कृपाचार्य महाभारत के महत्वपूर्ण चरित्रों में से एक थे। 

वे कौरवों और पांडवों दोनों के गुरु थे और उन्हें युद्ध की शिक्षा दी। 

महाभारत के युद्ध में पांडव और कौरवों के बीच घमासान हुआ। इसमें कई योद्धाओं ने महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं। 

अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने युद्ध में अद्वितीय वीरता दिखाई। उसने अकेले ही चक्रव्यूह में प्रवेश किया और कई कौरव योद्धाओं को परास्त किया। 

कौरवों को अभिमन्यु की वीरता से खतरा महसूस हुआ। कृपाचार्य, द्रोणाचार्य और कर्ण ने मिलकर उसे मारने की साजिश रची। 

चक्रव्यूह के भीतर अभिमन्यु को अकेला पाकर कृपाचार्य और अन्य कौरव योद्धाओं ने उसे घेर लिया और मिलकर उस पर हमला किया। 

अभिमन्यु ने बहादुरी से लड़ाई की, लेकिन साजिश और छल के कारण वह वीरगति को प्राप्त हुआ। 

कृपाचार्य ने इस साजिश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, हालांकि वे धर्म और मर्यादा के संरक्षक माने जाते थे। 

अभिमन्यु की हत्या के बाद, कौरवों की नैतिकता पर सवाल उठे, क्योंकि उन्होंने युद्ध के नियमों का उल्लंघन किया था। 

अभिमन्यु की मृत्यु ने पांडवों के मन में प्रतिशोध की आग भड़का दी, जिससे महाभारत का युद्ध और भी उग्र हो गया। 

कृपाचार्य जैसे ज्ञानी ब्राह्मण भी जब अधर्म का साथ देते हैं, तो युद्ध में नैतिकता की हार होती है। 

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