महाभारत एक महान युद्ध था, जिसमें पांडव और कौरव आमने-सामने थे। इस युद्ध में धर्म और अधर्म की लड़ाई हो रही थी। 

अर्जुन पांडवों में सबसे बड़े धनुर्धर थे। भगवान कृष्ण उनके मित्र, मार्गदर्शक और सारथी बने। 

कृष्ण ने पांडवों को दो विकल्प दिए: एक तरफ उनकी नारायणी सेना, और दूसरी तरफ स्वयं भगवान कृष्ण बिना अस्त्र-शस्त्र के। 

अर्जुन ने भगवान कृष्ण को चुना, क्योंकि वह जानते थे कि कृष्ण का साथ होना युद्ध में सबसे बड़ी ताकत है। 

भगवान कृष्ण ने अर्जुन का सारथी बनने का निर्णय इसलिए लिया ताकि वे उसे धर्म, कर्म और जीवन के सत्य का मार्ग दिखा सकें। 

कुरुक्षेत्र के मैदान में, अर्जुन ने अपने परिवार के खिलाफ युद्ध करने में संकोच किया और लड़ने से मना कर दिया। 

तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को भगवद गीता का उपदेश दिया, जिससे उसे धर्म और कर्तव्य का महत्व समझ में आया। 

भगवान कृष्ण ने अर्जुन के मन को शांत किया और उसे सही निर्णय लेने में मदद की, जिससे युद्ध में उसकी जीत हुई। 

कृष्ण ने दिखाया कि एक सच्चा मार्गदर्शक वह है, जो सही रास्ता दिखाए और अपने साथी को धर्म के मार्ग पर चलने में मदद करे। 

भगवान कृष्ण ने अर्जुन का सारथी बनकर धर्म की स्थापना की और यह दिखाया कि धर्म और सत्य की राह पर चलने वाला ही सच्चा विजेता होता है। 

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