करवा चौथ, भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो विशेषकर सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के लिए मनाया जाता है।
इस दिन महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं और चांद के निकलने का इंतजार करती हैं। चांद को अर्घ्य देकर ही वे अपना व्रत खोलती हैं।
महिलाएं इस दिन विशेष पूजन विधि का पालन करती हैं। एक थाल में करवे, गेहूं, चीनी और पैसे रखकर भगवान गणेश की पूजा करती हैं।
करवा चौथ की कई प्रसिद्ध कथाएँ हैं, जिनमें से एक है साहूकार की बेटी की कथा, जो अपने पति के पति की रक्षा के लिए अपने व्रत को बहाल करती है।
इस दिन महिलाएं पारंपरिक साड़ी पहनती हैं और अपने हाथों में मेहंदी लगाती हैं। तैयारियों में सजावट और मिठाई भी शामिल होती हैं।
रात के समय, चांद की पहली किरण दिखने पर महिलाएं विशेष विधि से चांद को अर्घ्य देती हैं और फिर अपने परिवार के साथ भोजन करती हैं।
भले ही समय बदला हो, पर करवा चौथ का महत्व अभी भी बना हुआ है। कई महिलाएं इसे सामाजिक समारोह के रूप में भी मनाती हैं।
करवा चौथ का पर्व श्रद्धा, भक्ति और परिवार के स्नेह का प्रतीक है। यह सुहागिनों को एकजुट करने और उनके संबंधों को मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है।
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