Vibhishan: रामायण का एक महत्वपूर्ण पात्र
रामायण, जो कि भारत का एक प्रमुख महाकाव्य है, में Vibhishan का नाम एक ऐसे चरित्र के रूप में आता है जो सत्य, धर्म और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है। विभीषण लंका के राजा रावण के छोटे भाई थे, लेकिन उन्होंने रावण के अधर्म और अत्याचार के विरोध में भगवान राम का साथ देने का निर्णय लिया। यह लेख विभीषण के चरित्र, उनके भाई रावण के साथ उनके संबंध, भगवान राम के प्रति उनकी भक्ति और हनुमान जी के साथ उनके संबंधों पर विस्तृत रूप से चर्चा करेगा।
विभीषण का परिचय
विभीषण विशर्वा और उनकी पत्नी कैकसी के तीसरे पुत्र थे, रावण एवं कुम्भकरण विभीषण के बड़े भाई थे । विभीषण का जन्म राक्षस कुल में हुआ था, लेकिन उनका स्वभाव और आचरण पूरी तरह से विपरीत था। जबकि रावण ने अधर्म का मार्ग चुना और अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया, विभीषण ने धर्म का पालन किया और सदैव सत्य के पक्ष में खड़े रहे। उनका व्यक्तित्व शांत, विनम्र और धार्मिक था। वे वेदों और शास्त्रों में गहरी रुचि रखते थे और हमेशा ईश्वर की भक्ति में लीन रहते थे।
रावण और विभीषण का संबंध
रावण और विभीषण का संबंध जटिल था। एक ओर, रावण एक शक्तिशाली और अजेय राजा था, जिसने अपने बल और शक्ति से त्रिलोक को भयभीत कर रखा था। दूसरी ओर, विभीषण एक धार्मिक और सत्यवादी व्यक्ति थे, जिन्हें अधर्म और अत्याचार से घृणा थी। विभीषण रावण के छोटे भाई होने के बावजूद, उन्हें रावण की नीतियों और क्रूरता से असहमति थी।
जब रावण ने माता सीता का अपहरण किया और उन्हें लंका लाया, तब विभीषण ने अपने भाई को चेताया कि यह कार्य अधर्म है और इसके परिणामस्वरूप रावण का सर्वनाश हो सकता है। विभीषण ने रावण को समझाने की पूरी कोशिश की कि वह माता सीता को श्रीराम को वापस कर दे और उनसे माफी मांगे। लेकिन रावण ने विभीषण की बातों को न केवल अनसुना किया, बल्कि उन्हें राज्य से निष्कासित भी कर दिया। यह वही क्षण था जब Vibhishan ने रावण का साथ छोड़कर भगवान राम की शरण में जाने का निर्णय लिया।
विभीषण की भगवान राम के प्रति भक्ति
विभीषण की भगवान राम के प्रति भक्ति अत्यधिक गहरी थी। उन्होंने राम जी को केवल एक आदर्श पुरुष नहीं, बल्कि भगवान विष्णु का अवतार माना और उनकी शरण में जाकर उन्हें अपना प्रभु स्वीकार किया। जब विभीषण राम जी के पास पहुंचे, तो उन्होंने उनसे विनम्रता पूर्वक अपनी भक्ति का परिचय दिया और उनसे अपने कर्तव्यों के लिए मार्गदर्शन मांगा।
भगवान राम ने विभीषण की भक्ति और उनकी सत्यनिष्ठा को पहचानते हुए उन्हें सहर्ष स्वीकार किया।
राम जी ने कहा, “जो भी मेरे पास शरण लेने आता है, मैं उसे अपना लेता हूं।” विभीषण ने राम जी से लंका को अधर्म से मुक्त कराने की प्रार्थना की और उनके साथ लंका युद्ध में भाग लिया। यह उनकी भक्ति और राम जी के प्रति उनके समर्पण का अद्वितीय उदाहरण है।
हनुमान जी और विभीषण का संबंध
हनुमान जी और विभीषण के बीच एक अद्वितीय संबंध था। हनुमान जी राम भक्त थे और विभीषण भी राम जी के परम भक्त थे, इस कारण से दोनों के बीच गहरा संबंध बना। हनुमान जी जब सीता माता की खोज में लंका पहुंचे, तो वहां उन्होंने विभीषण से मुलाकात की।
विभीषण ने हनुमान जी को राम जी का दूत जानकर उनका स्वागत किया और उन्हें सीता माता का पता बताने में मदद की। विभीषण ने हनुमान जी को अपनी भक्ति और राम जी के प्रति अपने समर्पण का परिचय दिया, जिससे हनुमान जी को यह विश्वास हो गया कि विभीषण राम जी के पक्ष में हैं और वे भी लंका में धर्म की पुनः स्थापना चाहते हैं।
हनुमान जी ने विभीषण की भक्ति को देखकर उन्हें आशीर्वाद दिया और राम जी के पास उनकी भक्ति का संदेश भी पहुंचाया। इस प्रकार, हनुमान जी और विभीषण (Vibhishan) के बीच एक मित्रता का संबंध विकसित हुआ जो कि राम जी के प्रति उनकी भक्ति पर आधारित था।
विभीषण को घर का भेदी क्यों कहते हैं ??
लंका के युद्ध में जब भगवान राम और रावण का आमना-सामना हुआ, तब रावण की प्रबल शक्ति और उसकी अजेयता के कारण उसे पराजित करना अत्यंत कठिन हो गया था। रावण के दस सिर और बीस भुजाएँ थीं, और वह बार-बार मारा जाकर भी पुनः जीवित हो जाता था। यह देखकर भगवान राम चिंतित हो गए कि रावण को कैसे हराया जाए।
इसी समय, विभीषण (Vibhishan) ने भगवान राम के पास आकर एक महत्वपूर्ण रहस्य बताया। उन्होंने राम जी से कहा, “प्रभु, रावण को मारने के लिए आपको उसकी नाभि पर वार करना होगा। उसकी नाभि में अमृत का एक कुंड है, जो उसे अमर बनाता है। जब तक इस अमृत कुंड को नष्ट नहीं किया जाएगा, रावण को मारा नहीं जा सकेगा।”
विभीषण की इस जानकारी के बाद, भगवान राम ने रावण पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। राम जी ने अपने धनुष पर ब्रह्मास्त्र साधकर रावण की नाभि की ओर निशाना साधा। जैसे ही यह ब्रह्मास्त्र रावण की नाभि पर लगा, उसकी नाभि में स्थित अमृत कुंड नष्ट हो गया और रावण अंततः धराशायी हो गया।
विभीषण द्वारा दी गई इस महत्वपूर्ण जानकारी के बिना रावण का वध असंभव था। Vibhishanकी इस सहायता के कारण भगवान राम ने रावण को पराजित कर लंका में धर्म और न्याय की स्थापना की। यह घटना विभीषण की बुद्धिमत्ता, सत्यनिष्ठा, और भगवान राम के प्रति उनकी अटूट भक्ति को प्रदर्शित करती है।
लंका का राजा बनने की कथा
लंका के युद्ध में जब रावण का वध हुआ, तब भगवान राम ने विभीषण को लंका का राजा बनाया। यह राम जी के प्रति विभीषण की भक्ति और उनकी सत्यनिष्ठा का प्रतिफल था। राम जी ने कहा कि एक सच्चे राजा के गुण विभीषण (Vibhishan) में हैं, जो कि न्यायप्रिय, धर्मनिष्ठ और अपने प्रजाजनों के कल्याण के प्रति समर्पित हैं।
विभीषण ने राम जी से प्रेरणा लेते हुए लंका को धर्म और न्याय के पथ पर चलाने का प्रण लिया। उन्होंने रावण के अधर्म और अत्याचार को समाप्त करके लंका में पुनः शांति और धर्म की स्थापना की। Vibhishan का राज्यकाल लंका में सुवर्णकाल के रूप में जाना जाता है, जिसमें सभी प्रजा जन सुखी और समृद्ध थे।
Vibhishan के चरित्र की महानता
विभीषण के चरित्र की महानता इस बात में है कि उन्होंने अपने ही भाई का विरोध किया, जब उन्होंने देखा कि वह अधर्म के मार्ग पर चल रहा है। उन्होंने सत्य, धर्म और न्याय के पक्ष में खड़े होने का साहस दिखाया, जो कि अत्यधिक कठिन कार्य था। Vibhishan ने हमें सिखाया कि भले ही परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, हमें सदा सत्य और धर्म के पक्ष में खड़ा रहना चाहिए।
विभीषण की भगवान राम के प्रति अटूट भक्ति, उनका कर्तव्यनिष्ठा और धर्म के प्रति समर्पण आज भी हमें प्रेरणा देता है। उनके चरित्र से यह सिखने को मिलता है कि सत्य और धर्म की राह पर चलने वाले व्यक्ति को अंततः विजय प्राप्त होती है, चाहे उसकी राह में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं।
निष्कर्ष
Vibhishan रामायण के एक ऐसे चरित्र हैं, जिन्होंने सत्य, धर्म और न्याय की स्थापना के लिए अपने ही परिवार के खिलाफ खड़े होने का साहस दिखाया। उनकी भगवान राम के प्रति भक्ति, हनुमान जी के साथ उनका संबंध और लंका के राजा के रूप में उनकी भूमिका अत्यधिक प्रेरणादायक है। विभीषण का जीवन हमें यह सिखाता है कि सत्य और धर्म की रक्षा के लिए किसी भी प्रकार का त्याग करना पड़े, वह करना चाहिए। उनके चरित्र की महानता सदैव हमें प्रेरणा देती रहेगी।