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Yudhishthira’s Reflection: नल (Nala) की यात्रा से सीखना

युधिष्ठिर को ज्ञान प्राप्ति: The Story of Nala and Damayanti

पांडवों के तेरह वर्षों के वनवास के दौरान, उनके आध्यात्मिक गुरु, ऋषि धौम्य, कभी-कभी उनसे मिलने आते थे, उन्हें कहानियाँ सुनाते और परामर्श देते। युधिष्ठिर को बार-बार द्रौपदी को दांव पर लगाने और पासे के खेल में अपने राज्य के साथ-साथ उसे भी खोने का पछतावा होता था। जब उन्होंने अंततः यह बात ऋषि धौम्य के साथ साझा की, तो ऋषि ने कहा, “जीवन    के चक्र में अच्छा और बुरा समय अपरिहार्य हैं।

कठिन समय में लोग कभी-कभी ऐसे काम करते हैं जो उनके स्वभाव के विपरीत होते हैं। ऐसे समय में उपदेश या समझाने से भी मदद नहीं होती। इतिहास में ऐसे कई राजा हुए हैं जिन्होंने मूर्खताएँ कीं और उनके परिवारों को कष्ट उठाना पड़ा। लेकिन सभी मामलों में, लोग कठिन समय से गुजरने में सफल रहे हैं। अत: किसी के जीवन में स्थायी रूप से अच्छा या बुरा समय नहीं होता।”

नल की कहानी (Story of  King Nala)

युधिष्ठिर ने उत्सुकता से पूछा, “लेकिन क्या कभी ऐसा हुआ है कि मुझ जैसे मूर्ख राजा ने, जिसने पासे का खेल खेला, अपनी पत्नी को दांव पर लगा दिया और अपना राज्य खो दिया? मैंने अपने परिवार और प्रजा को दुःख पहुँचाया है।” ऋषि धौम्य ने उत्तर दिया, “हाँ, ऐसा हुआ है। उसका नाम नल (Nala) था। आओ, मैं तुम्हें उसकी कहानी सुनाता हूँ।”

विदर्भ राज्य में दमयंती

“विदर्भ राज्य में दमयंती नाम की एक सुन्दर राजकुमारी रहती थी, जिसकी सुंदरता इतनी प्रसिद्ध थी कि देवता भी उसकी प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकते थे। निषध साम्राज्य के राजा के दो पुत्र थे- नल और पुष्कर। नल बहुत सुन्दर, मनमोहक और आदरणीय था।”

सुनहरे हंस का संदेश

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एक दिन, नल (Nala) शिकार के दौरान एक झील के पास आराम करने के लिए रुका। वहां उसने कई सफेद हंसों के बीच एक सुंदर सुनहरे हंस को देखा। नल इस आकर्षक प्राणी का विरोध नहीं कर सका। वह धीरे-धीरे सुनहरे हंस के पास पहुंचा और उसे पकड़ लिया। हंस ने अचानक मानव आवाज में उससे बात की, “हे महान नल! कृपया मुझे जाने दीजिए। मुझे स्वतंत्रता चाहिए, जैसे हर जीवित प्राणी को चाहिए। तुम एक महान राजा हो और मुझे पता है कि आप मुझसे सहमत होंगे।”

दमयंती से मिलन

नल को हंस की बातों में सच्चाई का एहसास हुआ। उसने पक्षी को छुड़ाने के लिए अपनी पकड़ ढीली कर दी। “मुझे खुशी है कि तुमने ऐसा किया,” हंस ने कहा। “तुमने एक पक्षी की बात सुनी और दयालु शासक के रूप में अपना कर्तव्य निभाया। मैं तुम्हें इस दुनिया में सबसे अच्छा साथी दिलवाऊंगा। राजकुमारी दमयंती, राजा भीम की बेटी, अपनी सुंदरता के लिए जानी जाती है। देवता भी उससे विवाह करना चाहते हैं और अप्सराएँ उससे ईर्ष्या करती हैं। उसकी सुंदरता वास्तव में बेजोड़ है। मैं तुम्हें उससे मिलवाऊंगा।”

दमयंती

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हंस ने विदर्भ की यात्रा की और शाही उद्यान में जाकर एक झाड़ी के पीछे छिप गया। अन्य सफेद हंस भी उसके साथ हो लिए और बगीचों में घूमने लगे। जब राजकुमारी दमयंती सफेद हंसों की ओर आकर्षित हुई और उनके पास पहुंची, तो वे सभी उड़ गये। थोड़ी देर बाद उसने सुनहरे पंख वाले हंस को देखा। वह मंत्रमुग्ध हो गई और उसे पकड़ने के इरादे से उसके पास चली गई। हंस ने दमयंती को नल के बारे में बताया और दमयंती ने भी नल से मिलने की इच्छा जताई।

देवताओं का अनुरोध

रास्ते में, नल (Nala) को चार देवता मिले – इंद्र, अग्नि, वायु, और वरुण। इंद्र ने नल से कहा, “हम दमयंती की दिव्य सुंदरता के बारे में सुनकर उसे विवाह करना चाहते हैं। कृपया हमारे राजदूत बनकर उससे हमारे गुणों का वर्णन करें और उसे मनाएं कि वह हममें से किसी एक से विवाह कर ले।”

नल ने विनम्रता से देवताओं का अभिवादन किया और उनके अनुरोध पर विचार करने लगा। देवताओं की बात सुनकर नल थोड़ा विचलित हुआ क्योंकि वह स्वयं भी दमयंती से प्रेम करता था। लेकिन देवताओं के अनुरोध को टालना भी असंभव था।

पहली मुलाकात

नल और दमयंती की पहली मुलाकात एक संयोगवश घटी थी। Nala , विदर्भ राज्य के जंगलों में शिकार कर रहा था, तभी उसने दमयंती को देखा, जो अपनी सहेलियों के साथ जलक्रीड़ा कर रही थी। नल की दृष्टि दमयंती पर पड़ी और वह उसकी सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो गया।

दमयंती ने भी नल को देखा और दोनों की आँखों में प्रेम की चिंगारी सुलग उठी। पहली ही मुलाकात में दोनों ने एक दूसरे के प्रति गहरा आकर्षण महसूस किया, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।

बिछड़ने का कारण

नल (Nala) और दमयंती के बीच प्रेम की शुरुआत तो हो गई थी, लेकिन उनकी प्रेम कहानी में एक मोड़ तब आया जब देवताओं ने दमयंती के विवाह के लिए अपना अनुरोध नल के माध्यम से भेजा। नल, देवताओं के आदेश का पालन करते हुए, दमयंती के पास पहुँचा और उसे देवताओं के प्रस्ताव के बारे में बताया।

दमयंती ने नल से कहा, “मैं केवल तुम्हें चाहती हूँ और तुम्हारे अलावा किसी और से विवाह नहीं करूंगी।” यह सुनकर नल ने भी अपनी भावनाएं व्यक्त कीं, लेकिन देवताओं के प्रस्ताव को नकारना असंभव था।

देवताओं का संदेश

Nala ने देवताओं का संदेश दमयंती तक पहुँचाया और उसे इंद्र, अग्नि, वायु, और वरुण के गुणों का वर्णन किया। उसने कहा, “इंद्र देवताओं के राजा हैं, अग्नि पवित्रता के प्रतीक हैं, वायु जीवन की शक्ति हैं और वरुण जल के देवता हैं। इन सबमें अद्वितीय गुण हैं और वे सभी तुम्हें अपनी पत्नी बनाना चाहते हैं।”

दमयंती का स्वयंवर

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Damyanti ने विनम्रता से देवताओं के प्रस्ताव को सुना और Nala से कहा, “मैं अपना स्वयंवर आयोजित करूंगी और उसमें इन देवताओं के साथ-साथ अन्य राजाओं को भी आमंत्रित करूंगी। लेकिन मेरे हृदय में केवल तुम्हारा स्थान है।” दमयंती ने अपने स्वयंवर के आयोजन की तैयारी शुरू कर दी। इस भव्य आयोजन में पूरे भारतवर्ष से अनेक राजा और देवता आए। नल भी वहां उपस्थित थे, लेकिन उन्होंने स्वयं को साधारण राजा के रूप में प्रस्तुत किया।

स्वयंवर के दिन, दमयंती ने सभी उपस्थित राजाओं और देवताओं के सामने प्रवेश किया। वह बेहद सुंदर और सजीव प्रतीत हो रही थी। दमयंती ने अपने चारों ओर नज़र दौड़ाई और वह बहुत सावधानी से अपने मनचाहे व्यक्ति को खोजने लगी। देवताओं ने भी यह जानकर कि दमयंती नल को चाहती है, अपनी शक्ति का उपयोग करके नल का रूप धारण कर लिया।

इस प्रकार वहां पॉंच नल (Nala) उपस्थित हो गए। दमयंती को यह समझ नहीं आया कि असली नल कौन हैं। दमयंती ने अपना मन शांत किया और गहराई से विचार करने लगी। उसने अपनी दृष्टि से उन सभी नलों को देखा और अंत में उसने असली नल को पहचान लिया। यह पहचान उसकी आस्था, प्रेम और नल के विशिष्ट गुणों के कारण संभव हो सकी।

दमयंती ने धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए नल (Nala) के गले में वरमाला डाल दी। यह देख सभी देवता और राजा चकित रह गए। देवताओं ने अपनी असली रूप धारण कर ली और दमयंती की निष्ठा और प्रेम की प्रशंसा की। देवताओं ने नल और दमयंती को आशीर्वाद दिया और स्वयंवर का आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इस प्रकार, दमयंती और नल का प्रेम विजयी हुआ और दोनों ने एक दूसरे के साथ सुखमय जीवन की शुरुआत की।

नल और दमयंती का पुनर्मिलन

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अंततः, दमयंती (Damyanti )और नल (Nala) फिर से मिले और उन्होंने मिलकर अपने राज्य को स्थापित किया और सुखपूर्वक जीवन बिताया। यह कहानी युधिष्ठिर को समझाने के लिए सुनाई गई थी कि बुरे समय में भी धैर्य और विश्वास बनाए रखना चाहिए, क्योंकि अच्छे और बुरे समय का चक्र अनवरत चलता रहता है और कभी कभी परिस्थितियां हमरे अनुकूल नहीं होती परन्तु अगर स्वयं पर विश्वास हो तो सब अच्छा ही होता है ।

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