भाग्य का सामना: राम अपने वनवास के दौरान शूर्पणखा से मिले (Ram ji Met Shurpanakha)
घने दंडकारण्य वन के मध्य में, अयोध्या के निर्वासित राजकुमार राम, अपनी समर्पित पत्नी सीता और वफादार भाई लक्ष्मण के साथ घूमते थे। एक दिन, राक्षस राजा रावण की बहन शूर्पणखा, उनके एकांत निवास पर पहुँच गई, यह वह समय था जब राम जी शूर्पणखा से मिले (Ram ji met Shurpanakha)। उसके जंगली और अदम्य व्यवहार ने राम का ध्यान खींचा और उन्होंने गर्मजोशी से उसका स्वागत किया। परन्तु तब तक किसी को नहीं पता था की यह भेंट भविष्य में कितने बड़े प्रसंग की शुरुवात मात्र है, यह सुब शुरू हुआ जब राम जी शूर्पणखा से मिले।
जैसे-जैसे शूर्पणखा राम से बातचीत करती गई, उसका उनके प्रति आकर्षण बढ़ता गया। हालाँकि, उसने सीता की उपस्थिति देखी और ईर्ष्या से प्रेरित होकर, राम के प्रति अपनी इच्छा व्यक्त की। अविचलित, राम ने सीता के प्रति अपने अटूट प्रेम पर जोर देते हुए, विनम्रतापूर्वक उनकी बातों को अस्वीकार कर दिया।
अस्वीकृति स्वीकार करने में असमर्थ शूर्पणखा की हताशा आक्रामकता में बदल गई। उसने सीता को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया, जिससे लक्ष्मण को हस्तक्षेप करना पड़ा। एक त्वरित और निर्णायक कदम में, अपने भाई और भाभी की रक्षा करते हुए, लक्ष्मण ने अपनी तलवार म्यान से निकाली और शूर्पणखा की नाक काट दी।
इस घटना ने एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया (When Ram ji met Shurpanakha), जिससे घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू हो गई जिसके परिणामस्वरूप रावण द्वारा सीता का अपहरण कर लिया गया। शूर्पणखा ने अपने घावों को सहलाते हुए और मन में बैठी हुई द्वेष भावना को सहते हुए, राम और उनके सहयोगियों से बदला लेने की कोशिश की। राम के निर्वासन ने सीता के प्रति उनकी भक्ति को उजागर किया और न्याय की खोज में आने वाली चुनौतियों का संकेत दिया।
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