कैसे हुई Ram Bhakt Hanuman और भगवान् की भेंट ??
श्रीराम और हनुमान जी की भेंट और उनके अनुयायी बनने की कहानी अत्यंत रोचक और प्रेरणादायक है। यह घटना रामायण के सुंदरकांड में वर्णित है। हनुमान जी का चरित्र वीरता, भक्ति और सेवा की मिसाल है।
आइए, इस महान कथा को इस लेख के माध्यम से विस्तार में जानें:
पृष्ठभूमि
हनुमान जी, जिन्हें बजरंगबली, अंजनीपुत्र और पवनपुत्र के नाम से भी जाना जाता है, भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं। उनका जन्म अंजनी माता और केसरी के घर हुआ था। हनुमान जी ने बाल्यावस्था में ही अपनी अद्वितीय शक्तियों का प्रदर्शन किया, जैसे सूर्य को फल समझकर निगलने का प्रयास।
हनुमान जी अपने गुरु सूर्यदेव से वेदों का अध्ययन करने के बाद, किष्किंधा के राजा सुग्रीव के सेवक बने। जब भगवान राम अपनी पत्नी सीता जी की खोज में जंगलों में भटक रहे थे, तभी उनकी भेंट हनुमान जी से हुई।
राम-हनुमान (Ram Bhakt Hanuman) मिलन
भगवान राम और लक्ष्मण, सीता माता की खोज में पंपा सरोवर के पास पहुंचे। वहीं, किष्किंधा पर्वत पर सुग्रीव अपने मंत्रियों के साथ रहते थे। सुग्रीव ने देखा कि दो तपस्वी युवराज उनकी ओर आ रहे हैं। भय से भरे सुग्रीव ने हनुमान को भेजा कि वह जाकर पता लगाएं कि ये लोग कौन हैं और किस उद्देश्य से आए हैं।
हनुमान जी, ब्राह्मण वेश धारण कर भगवान राम और लक्ष्मण के पास पहुंचे। विनम्रता से उन्होंने पूछा, “हे तपस्वीजन, आप कौन हैं और इस वन में किस उद्देश्य से आए हैं?” राम जी ने अपना परिचय देते हुए बताया कि मैं राजा दसरथ का पुत्र राम हूँ और ये मेरे अनुज लक्ष्मण है , मेरी पत्नी सीता का रावण ने अपहरण कर लिया है हम दोनों भाई उन्ही की खोज में हैं ।
हनुमान जी ने भगवान राम की बातें सुनकर, अपने वास्तविक रूप में आकर उन्हें प्रणाम किया और कहा, “प्रभु, मैं हनुमान हूँ, वानरराज सुग्रीव का सेवक। आपका दर्शन पाकर मैं धन्य हो गया।”
हनुमान जी ने राम जी को अपने कंधों पर बिठाया और उन्हें सुग्रीव के पास ले गए। सुग्रीव और भगवान राम की मित्रता का संकल्प हुआ और इस प्रकार राम और हनुमान की महान यात्रा शुरू हुई।
Ram Bhakt Hanuman की सेवा और भक्ति
हनुमान जी ने राम जी की सेवा में अपने को पूरी तरह समर्पित कर दिया। सीता माता की खोज में जब वानर सेना समुद्र तट पर पहुंची, तो सभी को समुद्र पार करने की चुनौती सामने थी। तभी जाम्बवंत ने हनुमान जी को उनकी अद्वितीय शक्तियों का स्मरण दिलाया। हनुमान जी ने पर्वताकार रूप धारण कर समुद्र को पार किया और लंका पहुंचकर सीता माता का पता लगाया।
लंका में हनुमान जी ने रावण के महल में प्रवेश किया और सीता माता से भेंट की। उन्होंने राम जी की अंगूठी सीता माता को दी और उन्हें आश्वस्त किया कि राम जी जल्द ही उन्हें मुक्त करवा लेंगे। हनुमान जी ने रावण की अशोक वाटिका को ध्वस्त कर दिया और अपने पराक्रम से रावण की सेना को परास्त किया।
हनुमान जी ने राम जी के लिए संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी के प्राण बचाए। युद्ध में उन्होंने कई बार अपने पराक्रम से राम जी की सेना की मदद की।
हनुमान जी की भक्ति का उदाहरण
हनुमान जी की भक्ति अद्वितीय और अप्रतिम है। उन्होंने सदा राम जी की सेवा की और कभी भी अपने लिए कुछ नहीं चाहा। राम जी ने जब अपने राज्याभिषेक के बाद सभी को उपहार दिए, तब हनुमान जी ने कहा कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए। राम जी ने हनुमान जी से कहा कि वे उनसे कुछ मांगें। हनुमान जी ने कहा, “प्रभु, मुझे केवल आपकी भक्ति और सेवा का आशीर्वाद चाहिए।”
राम जी ने हनुमान जी को आशीर्वाद दिया कि वे सदा अमर रहेंगे और जहां भी राम कथा होगी, वहां हनुमान जी का वास होगा। हनुमान जी की यह भक्ति उन्हें सदा के लिए भगवान राम का सबसे प्रिय भक्त बना दिया।
निष्कर्ष
हनुमान जी और भगवान राम की भेंट और उनकी भक्ति की कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और सेवा का मार्ग ही सबसे महान है। हनुमान जी की निस्वार्थ सेवा, भक्ति और वीरता हमें सदा प्रेरित करती है। उनकी कथा से हम यह भी सीखते हैं कि जब हम अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित होते हैं, तो कोई भी बाधा हमारे मार्ग में नहीं आ सकती। हनुमान जी का जीवन और उनकी भक्ति हम सभी के लिए एक आदर्श है।
इस प्रकार, हनुमान जी की राम जी के प्रति भक्ति और सेवा की यह कथा अनंतकाल तक हमें प्रेरित करती रहेगी और हमें अपने जीवन में सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती रहेगी।
जय हनुमान! जय श्रीराम!