Ranga Siyar ki Kahani :
एक पेड़-पौधे से भरे घने जंगल में कई जीव-जंतु निवास करते थे, वहीं एक चालाक सियार भी रहता था। उसका नाम चतुर था। चतुर हमेशा दूसरों से बेहतर दिखने और अधिक शक्तिशाली बनने की कोशिश करता था। वह अपने बुद्धिमत्ता और चालाकी के लिए प्रसिद्ध था, लेकिन उसकी असली पहचान कोई नहीं जानता था।
एक दिन, चतुर एक बड़े और बहुत पुराने वृक्ष के नीचे खड़ा हुआ था। वह सोच रहा था कि कैसे वह जंगल के राजा की तरह एक शक्तिशाली प्राणी बन सकता है। तभी, तेज हवाओं के झोंके ने उस वृक्ष को हिला दिया क्योंकि वृक्ष बहुत पुराना था इस्सकारन हवा के झोंके से वो पेड़ धराशायी होकर चतुर पर गिर गया। चतुर गंभीर रूप से घायल हुआ और वह किसी तरह अपने घर, यानी अपनी मांद की ओर घिसटने लगा। वह दर्द और भूख से तड़पता रहा और बहुत प्रयास करने के बाद अपनी मांद तक पहुंचा।
कई दिन बीत गए, चतुर अपनी मांद में पड़ा रहा। उसकी जान पर खतरा था, और उसे भूख से व्याकुलता महसूस हो रही थी। जब वह अंततः स्वस्थ होने के लिए बाहर निकला, तब तक वो बहुत ही कमजोर और पतला हो चुका था । भूख के मारे उसकी आंखों से चमक गायब हो गयी थी, और उसने महसूस किया कि उसकी ऊर्जा खत्म हो चुकी है। उसने जंगल में शिकार करने का फैसला किया। वह धीरे-धीरे चलने लगा और तभी उसकी नजर एक विनम्र खरगोश पर पड़ी।
चतुर ने खरगोश पर झपटने की कोशिश की, लेकिन अपनी शारीरिक कमजोरी के के कारण वह खरगोश को पकड़ने में असफल रहा। उसने सोचा, “अगर मैं एक बटेर का पीछा करूं, तो शायद मेरा भाग्य बदल जाए।” फिर उसने बटेर की तरफ दौड़ लगाई, लेकिन यहां भी उसे निराशा ही हाथ लगी।
भटकते-भटकते, चतुर एक बस्ती में पहुंच गया। उसने सोचा, “यहां शायद मुझे कोई मुर्गी या उसका बच्चा मिल जाए।” उसने गलियों में घूमना शुरू किया, लेकिन जैसे ही उसने अपनी नजरें चारों ओर दौड़ाईं, तभी अचानक कुत्तों का झुंड उसके पीछे पड़ गया।
ओह नहीं!” चतुर ने सोचा, “अब क्या करूं?” उसकी जान बचाने के लिए उसने दौड़ लगाई। कुत्तों की आवाजें लगातार उसके कानों में गूंज रही थीं।
अचानक, उसने देखा कि रंगरेजों की बस्ती पास में है। वहां एक बड़ा ड्रम रखा हुआ था, जिसमें रंग घोल रहे थे। भागते-भागते, चतुर ने तुरंत उस ड्रम में कूदने का फैसला किया।
ड्रम में कूदने के तुरंत बाद, चतुर ने अपने आपको रंग में छिपा लिया। कुत्तों की झुंड उसके पास से गुजरी और चतुर ने अपनी सांस रोक ली। वह सोचने लगा कि क्या वह बच जाएगा? उसने अपने आप को आश्वस्त किया और जब उसे लगा कि खतरा टल गया है, तब वह बाहर निकल आया। उसने देखा कि वह पूरी तरह से नीले रंग में रंग गया है। “वाह, यह तो अजीब तरीके से मेरे लिए काम कर गया,” चतुर ने सोचा।
चतुर ने इस अवसर का फायदा उठाने की योजना बनाई। अब जब उसकी स्थिति एकदम भिन्न थी, तो वह खुद को जंगल में एक शक्तिशाली प्राणी के रूप में पेश कर सकता था। उसने सोचा, “अगर सबने मुझे ऐसी अलग अवस्था में देखा तो मैं खुद को सबसे शक्तिशाली दिखा सकता हूँ और इस तरह सब मुझे राजा मान लेंगे।”
वह जंगल की ओर वापस गया और उसने देखा कि सभी जानवर उसकी नकारात्मक छवि से डर गए थे। चतुर ने एक ऊंचे चट्टान पर चढ़कर आवाज़ लगाई, “भाइयों! डरने की कोई बात नहीं है। मैं भगवान का भेजा हुआ राजदूत हूँ।”
सभी जानवर उसकी तरफ आकर्षित हुए और उन्होंने उसे ध्यान से सुनने का फैसला किया। चतुर ने कहा, “देखो, मेरा अनोखा नीला रंग! यह तुम्हारे लिए एक विशेष संदेश है। तुम सबको भगवान ने मेरे माध्यम से संदेश भेजा है। यदि तुम मुझे अपना सम्राट मानोगे, तो मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा।”
इस पर सभी जानवर बोले, “हे भगवान के दूत, हम आपको राजा मानने के लिए तैयार हैं।” चतुर ने अपनी योजना के अनुसार सभी जानवरों को राजसी ठाट से सम्मानित करना शुरू किया।
धीर-धीरे, चतुर ने सम्राट बनने की प्रक्रिया शुरू की। उसने शेर, बाघ, और अन्य जानवरों को अपनी सेवा में लाने के लिए एक महल बनाए। उसने खान-पान की व्यवस्था की और दरबार की परंपरा स्थापित की। चतुर को राजसी ठाट से जीने का आनंद मिल रहा था। अब हर सुबह चतुर का दरबार लगता था। लोमड़ियाँ उसकी सेवा में रहीं, और उसके चारों ओर शेर और बाघ उसकी सुरक्षा के लिए तैनात रहते थे। सियारों को उसने जंगल से निकाल दिया था, ताकि उसकी असली पहचान किसी को न मिले और वह अपने धोखे को बनाए रख सके।
एक दिन, चतुर अपने महल में आराम कर रहा था, तभी चांदनी रात आई। जंगल में सियारों की टोलियां “हू हू SSS” की बोली बोल रही थीं। उस आवाज़ ने चतुर के अंदर का सियार जाग उठा। उसके मुँह से भी “हू हू SSS” निकल गया। शेर और बाघ ने इसे सुन लिया और उन पर संदेह होने लगा।
“यह तो कोई साधारण सियार है,” बाघ ने कहा। ” इसने हमे धोका दिया है। इसे पकड़ो!” दोनों जानवर उसकी ओर लपक पड़े। चतुर ने भागने की कोशिश की, लेकिन उसकी पहचान उजागर हो चुकी थी। शेर और बाघ ने उसे घेर लिया और चतुर का हर तरह से अपमान करते हुए, उसे जंगल से बाहर निकाल दिया।
“मैंने अपनी सच्चाई को छिपाया और धोखे में जीया, लेकिन असली स्वभाव कभी नहीं छुप सकता,” चतुर ने अपने दिल में महसूस किया।
इस घटना ने उसे सिखा दिया कि किसी का भी ढोंग ज्यादा दिन तक नहीं चल सकता। असली पहचान और सत्य हमेशा सामने आता है।
चतुर अब अकेला और निराश था। उसने अनुभव किया कि उसके द्वारा उठाए गए सभी कदम अंततः उसके लिए हानिकारक साबित हुए। झूठ, धोखा और दिखावा सिर्फ अस्थायी आनंद देते हैं, लेकिन अंततः सच्चाई ही सर्वोच्च है।
कहानी से शिक्षा :
- पंचतंत्र की इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि सच्चाई का सामना करना और अपनी असली पहचान को स्वीकार करना हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है। किसी भी प्रकार के धोखे से बचने का सर्वोत्तम उपाय यही होता है कि हम खुद को हमेशा वास्तविक रूप में प्रस्तुत करें।
- इस कहानी का यह भी संदेश है कि हमारी चालाकी और दिखावे का ढोंग केवल कुछ समय के लिए चल सकता है, लेकिन सच्चाई की परछाई हमेशा हमारे पीछे रहती है। सो, हमेशा सच्चाई पर चलें और अपने मूल्यों को न भूलें।
- इस प्रकार, चतुर की कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में जो भी करें, वह हमेशा सच्चाई और नैतिकता के साथ होना चाहिए। एक दिन, सत्य की जीत होती है।