Panchtantra से तीन मूर्ख पंडित की कहानी
Panchatantra ki kahani : बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से गांव में तीन ब्राह्मण रहते थे, जिन्हें अपने ज्ञान पर अत्यधिक गर्व था। वे महान विद्वान बनने का सपना देखते थे और कई वर्षों तक गुरुकुल में कठिन परिश्रम से शिक्षा ग्रहण की थी। वे अपनी विद्या के बल पर पूरे विश्व में प्रसिद्ध होना चाहते थे।
जब उनकी शिक्षा पूरी हुई, तो उनके गुरु ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा, “जाओ, अपनी विद्या का उपयोग दुनिया के भले के लिए करो। लेकिन याद रखना, ज्ञान के साथ विवेक का होना भी अत्यंत आवश्यक है।” तीनों पंडित अपने गुरु की इस सलाह को अनसुना करते हुए अपनी यात्रा पर निकल पड़े। उनके मन में केवल अपने ज्ञान का प्रदर्शन करने और अपनी श्रेष्ठता साबित करने का विचार था।
जंगल में प्रवेश
अपनी यात्रा के दौरान, वे एक घने जंगल में पहुंचे। रास्ते में उन्हें हड्डियों का एक बड़ा ढेर दिखाई दिया। उन हड्डियों को देखकर पहला पंडित बोला, “भाइयों, यह किसी जानवर का कंकाल है। यह सुनहरा मौका है हमारी विद्या का परीक्षण करने का। मैं इसे जोड़कर पूरा कंकाल बना सकता हूं।”
दूसरे पंडित ने गर्व से कहा, “और मैं इसे मांस और चमड़े से ढक सकता हूं, ताकि यह जानवर जैसा दिखे।”
तीसरे पंडित ने बड़े आत्मविश्वास से कहा, “मेरी विद्या तो इससे भी अधिक अद्भुत है। मैं इस मृत शरीर में प्राण डाल सकता हूं और इसे जीवित कर सकता हूं।”
तीनों ने मिलकर अपनी विद्या को आज़माने का निर्णय लिया।
पहले और दूसरे पंडित का काम
पहले पंडित ने अपनी विद्या का उपयोग करते हुए हड्डियों को जोड़कर एक कंकाल तैयार कर दिया। उसका काम देखकर बाकी दोनों पंडित उसकी प्रशंसा करने लगे। फिर, दूसरे पंडित ने मंत्र पढ़कर कंकाल को मांस और चमड़े से ढक दिया। अब वह जानवर पूरी तरह से तैयार दिखने लगा। दोनों पंडित अपने काम पर गर्व महसूस कर रहे थे।
चौथे साथी की चेतावनी
तीनों के साथ उनका एक और साथी था, जो ज्यादा ज्ञानी नहीं था, लेकिन बुद्धिमान था। जब उसने उस बने हुए शरीर को ध्यान से देखा, तो वह चिंतित हो गया। उसने उन्हें चेतावनी दी, “यह कोई साधारण जानवर नहीं है। यह जंगल का राजा शेर है। यदि तुमने इसे जीवित कर दिया, तो यह हम सभी को खा जाएगा। इसे जीवित करना बहुत बड़ी मूर्खता होगी।”
लेकिन तीनों पंडित उसकी बात को हंसी में उड़ाते हुए बोले, “तुम हमारे ज्ञान और विद्या को समझ नहीं सकते। हम महान विद्वान हैं और हमें अपनी क्षमता पर पूरा भरोसा है। हमें इसे जीवित करने दो।”
चौथा साथी समझ गया कि उसकी बात सुनने वाला कोई नहीं है। उसने अपनी जान बचाने के लिए पास के एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ने का फैसला किया।
तीसरे पंडित की मूर्खता
अब तीसरे पंडित की बारी थी। उसने मंत्रों का उच्चारण शुरू किया और अपनी विद्या का प्रयोग करते हुए शेर में प्राण डाल दिए। शेर ने जैसे ही जीवन पाया, वह तुरंत दहाड़ मारने लगा। उसकी दहाड़ से पूरा जंगल गूंज उठा।
शेर का हमला
शेर ने अपनी आंखें खोलीं और अपने चारों ओर मनुष्यों को देखकर भूख से बेकाबू हो गया। वह तुरंत तीनों पंडितों पर झपट पड़ा। उन तीनों के पास न तो भागने का मौका था और न ही शेर से लड़ने की कोई शक्ति। शेर ने कुछ ही क्षणों में उन्हें मार डाला।
चौथे साथी की जान बची
पेड़ पर चढ़ा चौथा साथी, जो समझदार था, सुरक्षित बच गया। उसने ऊपर से देखा कि कैसे शेर ने उन तीनों की मूर्खता का अंत कर दिया। वह मन ही मन सोचने लगा, “केवल शिक्षा और ज्ञान का होना पर्याप्त नहीं है। यदि ज्ञान के साथ विवेक और समझ न हो, तो वही ज्ञान विनाश का कारण बन जाता है।”
गांव लौटने पर सीख
उस चौथे व्यक्ति ने गांव लौटकर लोगों को यह कहानी सुनाई और सभी को यह सीख दी कि किसी भी विद्या या ज्ञान का उपयोग विवेक और बुद्धिमानी के साथ करना चाहिए।
कहानी की शिक्षा
- ज्ञान तभी उपयोगी होता है, जब उसका सही समय और सही स्थान पर प्रयोग किया जाए।
- घमंड और आत्म-प्रशंसा विनाश का कारण बनते हैं।
- विवेक और बुद्धिमत्ता ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण हैं।
- प्रकृति के नियमों के विपरीत जाना हमेशा नुकसानदायक होता है।