nal aur damyanti

विदर्भ की राजकुमारी Damyanti और Nal की नियति || Story|| Hindi

Nal aur Damyanti की Kahani

परिचय

प्राचीन भारत में एक सुंदर और सम्पन्न राज्य था, विदर्भ। विदर्भ के राजा भीम और उनकी रानी को लंबे समय तक संतान का सुख नहीं मिला। कई वर्षों की तपस्या और यज्ञों के बाद, उन्हें एक सुंदर पुत्री का आशीर्वाद प्राप्त हुआ, जिसका नाम रखा गया दमयंती। दमयंती का सौंदर्य और गुण सम्पूर्ण आर्यावर्त में प्रसिद्ध हो गया। उसका सौंदर्य ऐसा था कि लोग उसे देखने के लिए दूर-दूर से आते थे। उसके जन्म के समय ही ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि वह संसार की सबसे सुंदर और गुणवान रानी बनेगी।

नल(Nala) और दमयंती(Damyanti) का प्रथम परिचय

उसी समय, निषध नामक राज्य पर नल नाम का वीर और पराक्रमी राजा शासन करता था। नल अपने कौशल, वीरता और न्यायप्रियता के लिए पूरे आर्यावर्त में प्रसिद्ध था। वह इतना सुंदर था कि उसे देखने पर देवता भी मुग्ध हो जाते थे। एक दिन, नल अपने महल के बगीचे में टहल रहा था, तभी उसने एक हंस को पकड़ा। यह कोई साधारण हंस नहीं था, यह हंस बात कर सकता था। हंस ने नल से कहा, “महाराज, मुझे छोड़ दीजिए, मैं आपको विदर्भ की राजकुमारी दमयंती के बारे में बताऊंगा, जो आपके समान रूप से प्रसिद्ध और सुंदर है।”

हंस की बातें सुनकर नल ने उसे छोड़ दिया। हंस ने वचन दिया कि वह दमयंती के पास जाकर नल की प्रशंसा करेगा और उसके सौंदर्य के बारे में बताएगा। हंस उड़कर विदर्भ पहुंचा और दमयंती के महल के बगीचे में उतरा। दमयंती अपने सखियों के साथ बगीचे में टहल रही थी। हंस को देखकर उसने उसे पकड़ने की कोशिश की, तभी हंस ने बोलना शुरू किया, “राजकुमारी, मैं निषध देश के राजा नल के पास से आया हूं। वे आपके समान ही सुंदर और गुणवान हैं।” हंस ने नल के वीरता, पराक्रम और सौंदर्य की प्रशंसा की और उसे देखने के लिए दमयंती को प्रेरित किया।

स्वयंवर की घोषणा

दमयंती ने हंस की बातों को ध्यान से सुना और नल के प्रति प्रेमभाव उत्पन्न हो गया। उसने अपने पिता से नल के बारे में सुना और उसके गुणों की प्रशंसा की। कुछ समय बाद, राजा भीम ने दमयंती के स्वयंवर की घोषणा की। इस घोषणा से पूरे आर्यावर्त के राजा, राजकुमार और देवता उत्साहित हो उठे। सभी ने विदर्भ की ओर रुख किया ताकि वे इस अद्वितीय सुंदर राजकुमारी का हाथ प्राप्त कर सकें।

स्वयंवर के दिन, विदर्भ के महल में एक भव्य आयोजन हुआ। राजा भीम ने स्वयंवर मंडप को सुंदर तरीके से सजवाया। स्वयंवर में भाग लेने वाले राजा, राजकुमार और देवता उपस्थित थे। इंद्र, अग्नि, वरुण और यम जैसे देवता भी इस स्वयंवर में उपस्थित थे। दमयंती ने सुंदर वस्त्र धारण कर स्वयंवर मंडप में प्रवेश किया। उसकी सुंदरता को देखकर सभी मंत्रमुग्ध हो गए।

Damyanti का निर्णय

स्वयंवर मंडप में पहुंचकर दमयंती ने देखा कि नल भी वहां उपस्थित हैं। देवताओं ने नल का रूप धारण कर लिया था ताकि वे दमयंती को भ्रमित कर सकें। लेकिन दमयंती का प्रेम सच्चा था, उसने नल को पहचान लिया। उसने अपने गले में वरमाला डालकर नल को अपने पति के रूप में चुन लिया। देवताओं ने दमयंती के निर्णय का सम्मान किया और नल और दमयंती का विवाह संपन्न हुआ। सभी ने इस दिव्य युगल को आशीर्वाद दिया।

सुखी जीवन

विवाह के बाद, नल और दमयंती ने निषध राज्य में सुखी जीवन व्यतीत किया। नल एक आदर्श राजा थे, जो अपने प्रजा के कल्याण के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। दमयंती एक आदर्श रानी थी, जो अपने गुणों और धर्मपालन से सभी का मन जीत लेती थी। दोनों के दो बच्चे हुए, एक पुत्र और एक पुत्री। निषध राज्य में चारों ओर खुशहाली थी और नल और दमयंती का प्रेम दिन-ब-दिन गहरा होता जा रहा था।

कलियुग और दुर्योधन का प्रवेश

लेकिन, किस्मत ने उनके सुखी जीवन को कड़ी परीक्षा में डालने का निर्णय लिया। कलियुग और दुर्योधन ने नल और दमयंती के सुखी जीवन को खत्म करने की योजना बनाई। एक दिन, जब नल शिकार के लिए जंगल में गए थे, कलियुग ने उनके मन में प्रवेश किया और उन्हें जुए की लत लगा दी। नल ने जुआ खेलना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे अपना सारा राज्य, धन और संपत्ति खो दी।

दमयंती ने अपने पति को समझाने की कोशिश की, लेकिन जुए की लत ने नल को अंधा कर दिया था। वे अपने होश खो बैठे और अपने राज्य और परिवार को छोड़ दिया। नल और दमयंती ने वनवास का जीवन अपनाया और जंगल में रहने लगे। वन में जीवन कठिन था, लेकिन दमयंती ने अपने पति का साथ नहीं छोड़ा।

वनवास

वन में रहना नल और दमयंती के लिए अत्यंत कठिन था। एक दिन, नल ने सोचा कि उनके दुर्भाग्य का कारण वे स्वयं हैं, इसलिए उन्होंने दमयंती को छोड़ दिया और चले गए। दमयंती ने जब अपने पति को नहीं देखा, तो वह बहुत दुखी हो गई। उसने अपने पति की खोज में निकलने का निश्चय किया।

दमयंती (Damayanti) की पीड़ा

जब दमयंती उठी तो नल कहीं नहीं मिला। उसने उसे खोजा और अंत में समझ गई कि उसने क्या किया था। वह गहरे जंगल में रोती और सिसकती रही, उसे ढूंढने की आशा में। अचानक, एक अजगर ने उसे झपट लिया और अपने चारों ओर लपेटना शुरू कर दिया। निराश, दमयंती मदद के लिए चिल्लाई। सौभाग्य से, आसपास के शिकारियों के एक समूह ने उसकी चीख सुनी और उसे अजगर से बचा लिया।

दमयंती (Damayanti) की प्रार्थना

बाद में, उसने शिकारियों को अपनी कहानी सुनाई, उम्मीद में कि वे उसकी दुर्दशा को समझेंगे। लेकिन उसकी सुंदरता ने कई शिकारियों को मोहित कर दिया। उसने सच्चे दिल से प्रार्थना की, “हे भगवान, अगर मेरे पति के लिए मेरा प्यार सच्चा है, मुझे इस खड़े आदमी को श्राप देने की अनुमति दें और उसे जिंदा जला दिया जाये!” उसके शब्दों के साथ ही शिकारियों में से एक शिकारी आग लगने के कारण मर गया। बाकी शिकारी उस शिकारी की स्थिति देख , तेजी से भाग गए।

दमयंती का वन में संघर्ष

दमयंती फिर से जंगल में भटकने लगी, समय का पता खोते हुए। एक दिन, उसने एक कारवां से सामना किया। कारवां के एक आदमी ने पूछा,

“हे महान महिला, क्या आप ठीक हैं? आप यहाँ जंगल में क्या कर रही हैं?”

दमयंती ने कोई उत्तर नहीं दिया। आदमी ने कहा, ‘यह जंगल जानवरों और सांपों से भरा है। हमारा समूह चेदि साम्राज्य की ओर जा रहा है। हमारे साथ आओ और हम वहां आपके लिए कुछ ढूंढेंगे।” बिना कुछ बोले दमयंती कारवां में सवार हो गई और समूह के साथ यात्रा करने लगी।

दमयंती का दुःख

हालांकि समय बीतता गया, उसने उन्हें अपनी रानी की स्थिति के बारे में नहीं बताया या अपने पति के बारे में बात नहीं की जिसने सब कुछ जुए में हार दिया था। एक दुर्भाग्यपूर्ण रात, समूह ने एक झील के पास तंबू लगाया। कुछ घंटों बाद हाथी और जंगली जानवर आ गए और तंबू को नष्ट कर दिया, कई लोगों को मार डाला। दमयंती उन कुछ जीवित बचे लोगों में से एक थी। उसे लगा कि यह दुर्भाग्य की श्रृंखला उस पर और उसके आस-पास के लोगों पर हमला कर रही है।

दमयंती ने सोचा:

“शायद मुझे देवताओं की बात न सुनने की सज़ा मिल रही है,”

दमयंती (Damayanti) का नया सफर

कुछ लोग उसे अपशगुन मानने लगे, फिर भी उन्होंने उसे कारवां में चेदि शहर तक अपने साथ ले लिया। राजधानी शहर में, उसका परिचय राज्य की रानी मां से कराया गया।

रानी मां ने उस पर दया दिखाई और पूछा,

“तुम क्या काम कर सकती हो?”

दमयंती ने उत्तर दिया,

”मैं राजकुमारी की प्रतीक्षारत महिला हो सकती हूं।”

रानी मां ने सिर हिलाया और दमयंती आखिरकार एक अस्थायी घर पाने में सक्षम हो गई।

नल(Nala) और कर्कोटक का सामना

इस बीच, नल अपनी चुनौतियों का सामना कर रहा था। एक जंगल में भटकते हुए उसने एक साँप को आग के घेरे में फंसा देखा।

साँप ने कहा,

“मेरा नाम कर्कोटक है। कृपया मेरी मदद करें।”

नल ने दया दिखाते हुए उसे बाहर निकाल लिया। अचानक, कर्कोटक ने उसे काट लिया, और नल एक कुरूप बौने में बदल गया। नल ने पूछा, “आपने मेरे लिए यह क्यों किया?” साँप ने उत्तर दिया, “मैंने यह तुम्हारी भलाई के लिए किया है ताकि कोई तुम्हें पहचान न सके। तुम्हें अपने मूल रूप में वापस लौटने की शक्ति मिलेगी।” नल ने सोचा, “शायद इसमें कुछ सच्चाई है।”

नल(Nala) का अयोध्या की ओर रुख

दोनों के रास्ते अलग हो गए और नल ने अयोध्या का रास्ता पकड़ लिया। वहाँ राजा ऋतुपर्ण का राज्य था। नल ने अपना नाम बदलकर बाहुक रख लिया और कहा, “मैं एक विशेषज्ञ रसोइया हूं और सबसे स्वादिष्ट खाना बना सकता हूं।” ऋतुपर्णा ने नल का भोजन चखा और उसे मुख्य खानसामे के रूप में नियुक्त किया।

दमयंती और नल का पुनर्मिलन

नल का परिवर्तन

नल ने अपनी जुए की लत और अपने दुर्भाग्य से उबरने का संकल्प लिया। जब उन्होंने दमयंती को अकेला छोड़ दिया, तो उनका हृदय अपराधबोध और पछतावे से भर गया। वे अपने असली रूप और पहचान को छुपाकर अयोध्या के राजा ऋतुपर्ण के दरबार में पहुँच गए और वहां बावर्ची का काम करने लगे। नल ने अपना नाम बदलकर “बहुक” रख लिया और अपनी पहचान गुप्त रखी। उन्होंने राजा ऋतुपर्ण को घुड़सवारी और अश्व चिकित्सा का ज्ञान भी सिखाया।

दमयंती (Damayanti) की कठिन यात्रा

दूसरी ओर, दमयंती ने नल को ढूंढ़ने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। वह अपने पति की तलाश में जंगलों, गाँवों और नगरों में भटकती रही। उसने अपनी राह में आने वाली हर कठिनाई का सामना धैर्य और साहस के साथ किया। उसकी खोज में उसे कई मददगार भी मिले, लेकिन वह नल को ढूंढ़ नहीं पाई।

दमयंती (Damayanti) का उपाय

दमयंती ने अंततः विदर्भ लौटकर एक योजना बनाई। उसने अपने पिता राजा भीम से अनुरोध किया कि वे एक दूसरा स्वयंवर का आयोजन करें और उसमें सभी राज्यों के राजाओं और महारथियों को आमंत्रित करें। यह समाचार दूर-दूर तक फैलाया गया ताकि नल को भी यह खबर मिले और वह स्वयंवर में आएं।

नल (Nala) को सूचना मिलना

राजा ऋतुपर्ण को भी इस स्वयंवर का समाचार मिला और वे इसमें भाग लेने के लिए उत्सुक हो गए। उन्हें विदर्भ पहुंचने के लिए बहुत कम समय था। नल, जो अब बहुक के नाम से जाने जाते थे, ने अपने अश्वकौशल का प्रदर्शन किया और ऋतुपर्ण को समय पर विदर्भ पहुँचाने का वचन दिया। नल ने ऋतुपर्ण को अपने घोड़ों के साथ इतनी तेज गति से चलाया कि वे समय पर विदर्भ पहुँच गए।

स्वयंवर का आयोजन

जब नल और ऋतुपर्ण विदर्भ पहुँचे, तो दमयंती ने नल को पहचान लिया। उसने अपने सखियों को भेजकर नल के बारे में जानकारी प्राप्त की। उसने अपने विश्वासपात्रों को यह संकेत दिया कि नल ही उसके पति हैं। नल ने भी दमयंती को देखकर अपने आप को पहचान लिया और उनसे मिलने की कोशिश की।

Damyanti aur Nala का पुनर्मिलन

दमयंती ने नल से सीधे-सीधे सामना किया और उनसे उनके असली नाम और पहचान के बारे में पूछा। नल ने अंततः अपना असली नाम और पहचान प्रकट की। उन्होंने बताया कि कैसे कलियुग ने उन्हें जुए की लत में फंसाया और कैसे उन्होंने अपने राज्य और परिवार को खो दिया। नल ने अपनी भूल के लिए दमयंती से माफी मांगी और अपनी प्रेम और निष्ठा की पुष्टि की।

राज्य की पुनःप्राप्ति

दमयंती ने अपने पति को माफ कर दिया और दोनों ने मिलकर निषध राज्य को पुनः प्राप्त करने की योजना बनाई। नल और दमयंती ने राजा ऋतुपर्ण के साथ मिलकर अपने राज्य को पुनः प्राप्त किया। नल ने अपने कौशल और पराक्रम से राज्य की समस्याओं का समाधान किया और निषध राज्य को फिर से समृद्ध बनाया।

निष्कर्ष

नल और दमयंती की कहानी हमें सच्चे प्रेम, धैर्य और संकल्प की महत्वपूर्ण शिक्षा देती है। यह कहानी यह भी सिखाती है कि कठिनाइयों का सामना करने के लिए साहस और धैर्य आवश्यक हैं और सच्चा प्रेम हमेशा विजयी होता है।

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