maharishi valmiki

रामायण के रचियता महर्षि वाल्मीकि कैसे बने डाकू से महाकवि ? Maharishi Valmiki Biography

महर्षि वाल्मीकि: एक महाकाव्यकारी कवि का जीवन परिचय

भारतीय साहित्य के महाकाव्य “रामायण” के रचयिता महर्षि वाल्मीकि (Maharishi Valmiki)का जीवन एक अद्वितीय और प्रेरणादायक कथा है। वाल्मीकि ने अपनी अमूर्त साधना के माध्यम से भारतीय संस्कृति में एक अमूर्त कला, “रामायण,” को पैदा किया, जो आज भी मानवता के मार्गदर्शक के रूप में उज्ज्वलित है।

Maharishi  Valmiki  का जन्म और परिवार:

महर्षि वाल्मीकि का जन्म त्रेतायुग के एक अद्वितीय काल में हुआ था। वाल्मीकि का असली नाम महर्षि प्रचेतस था, लेकिन उन्हें उनके तपस्या के कारण “वाल्मीकि” भी कहा जाता है, जो ‘आंतर्यामी’ या ‘मुनियों के आंतर में बसे हुए’ का अर्थ है। वाल्मीकि ब्रह्मर्षि गोत्र से संबंधित थे और उनके पिता का नाम प्रचेता था।

तपस्या और वाल्मीकि जी के प्रथम श्लोक की रचना :

एक समय, वाल्मीकि जी तपस्या के लिए गंगा नदी के तट पर गए थे। वहां उनके सामने एक प्रेम में लिपटे हुए पक्षी का नर और नारी का जोड़ा था। उसी समय, एक शिकारी ने अपने तीर से नर पक्षी को मार दिया। यह घटना देखकर वाल्मीकि जी के
मुख से स्वतंत्र रूप से एक श्लोक निकला, जो इस प्रकार था:

“मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥”

इसका अर्थ है: जिस दुष्ट ने भी यह घृणित क्रिया की है, उसे शाश्वती प्रतिष्ठा कभी नहीं मिलेगी। उस दुष्ट ने प्रेम में लिप्त पक्षी का वध किया है। इस घटना के बाद, महाकवि ने “रामायण” की रचना की।

रामायण की रचना:

वाल्मीकि ने अपने तपस्या के फलस्वरूप “रामायण” नामक महाकाव्य की रचना की , जो भारतीय साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा  है। यह महाकाव्य भगवान राम के जीवन, उनके पत्नी सीता, भक्त हनुमान और अन्य कई चरित्रों को समाहित करता है। “रामायण” भक्ति, धर्म, नीति और कर्तव्य के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को साझा करता है और मानवता को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।

रामायण में भगवान राम का चरित्र अपने पूरे समर्पण और नीति के लिए प्रसिद्ध है। भगवान राम की आत्म-समर्पण और उनकी धर्मपरायणता ने वाल्मीकि को एक उदार दृष्टिकोण और महाकवि बनाया।

उपासना और विद्या:

वाल्मीकि के जीवन में तपस्या के अलावा विद्या का भी विशेष स्थान था। उन्होंने वेद, उपनिषद, संस्कृत भाषा, और वेदांत की शिक्षा प्राप्त की थीं, जो उन्हें एक विद्वान और महान कवि बनने में सहायक हुआ।

महर्षि वाल्मीकि की मृत्यु:

वाल्मीकि का जीवन तप, विद्या, और ध्यान में विनीत रहा। उनकी मृत्यु का समय आया तो उन्होंने अपनी आत्मा को परमात्मा में समर्पित किया।

महर्षि वाल्मीकि जी के जीवन परिचय ने हमें क्या सिखाया ?

वाल्मीकि ने अपने जीवन के माध्यम से हमें धर्म, नीति, और विद्या के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को सिखाया है। उनकी तपस्या
से उत्पन्न “रामायण” मानवता के लिए एक अमूर्त धरोहर बन गया है, जो हमें सही और नीतिपरायण जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है। महर्षि वाल्मीकि का जीवन हमें सिखाता है कि अद्वितीयता और भक्ति के साथ ही सच्चे सफलता की प्राप्ति हो सकती है।

महर्षि वाल्मीकि से संबंधित प्रश्नों के उत्तर:

Q. वाल्मीकि का जीवन परिचय क्या है?

Ans : महर्षि वाल्मीकि एक प्रमुख हिन्दू महर्षि और कवि थे जिन्होंने “रामायण” का समर्थन किया। उनका जन्म त्रेतायुग के काव्यप्रवर्तक रूप में माना जाता है।

Q.रामायण का रचना समय क्या था?

Ans: महर्षि वाल्मीकि ने अपनी तपस्या के दौरान “रामायण” की रचना की, जिसे उन्होंने भगवान ब्रह्मा की कृपा से किया। इस काव्य का रचनाकाल त्रेतायुग माना जाता है|

Q.वाल्मीकि जी की तपस्या से कैसे उत्पन्न हुआ “रामायण”?

Ans: वाल्मीकि जी ने गंगा नदी के तट पर अपनी तपस्या की थी जब उन्होंने एक दिन एक पक्षी की हत्या को देखा। इस घटना ने उनके मन में भावनाओं को प्रेरित किया, और उन्होंने राम कथा का रचना करने का निर्णय लिया।

Q.रामायण का महत्व क्या है?

Ans: “रामायण” हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जिसमें भगवान राम के जीवन की कहानी और उनके आदर्शों का चित्रण है। यह एक महाकाव्य है जो धर्म, नैतिकता, और भक्ति के सिद्धांतों को साझा करता है।

Q.वाल्मीकि जी ने कौन-कौन सी श्रुतियों का अध्ययन किया था?

Ans: वाल्मीकि जी ने वेद, उपनिषद, संस्कृत भाषा, और वेदांत की शिक्षा प्राप्त की थीं, जो उन्हें एक विद्वान और महान कवि बनने में सहायक हुआ।

Q. वाल्मीकि जी का श्राप किस प्रकार का था?

Ans: वाल्मीकि जी का श्राप “रामायण” में एक दर्शनिय घटना के माध्यम से आता है, जब एक डाकू ने उन्हें लूटने का प्रयास किया था। वाल्मीकि जी ने अपने तप शक्तियों से डाकू को शाप दिया, जिससे वह डाकू वानर बन गया।

 

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