kabir ke dohe

Kabir dohavali : 20 Inspiring Kabir ke dohe for a Transformative Life || क्या आप इनके गहरे अर्थ जानते हैं?|| Meaning || Hindi

Sant Kabir ke dohe : जीवन के गहरे अर्थ

संत कबीर दास भारतीय भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे। उनके दोहे उनकी सरलता, स्पष्टता और गहनता के कारण आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने वे उनके समय में थे। कबीर के दोहे न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक संदेश देते हैं, बल्कि वे सामाजिक सुधार और मानवीय मूल्यों का भी प्रचार करते हैं। उनके दोहे जीवन के हर पहलू को छूते हैं और हमें जीवन के गहरे अर्थ को समझने में मदद करते हैं।

Kabir Dohavali

यहाँ Kabir ke dohe से  प्रमुख 20 दोहे अर्थ सहित प्रस्तुत किए जा रहे हैं:

1. दोहा:

“साईं इतना दीजिए, जा में कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय॥”

अर्थ:

कबीर इस दोहे में भगवान से विनती करते हैं कि उन्हें इतना ही दें जिससे उनका और उनके परिवार का पेट भर सके और आने वाले अतिथियों को भी भूखा न रहना पड़े। यह दोहा सरलता और संतोष की भावना को प्रकट करता है।

2. दोहा:

“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥”

अर्थ:

कबीर कहते हैं कि जब वे दूसरों में बुराई खोजने निकले तो उन्हें कोई बुरा नहीं मिला, लेकिन जब उन्होंने अपने हृदय की ओर देखा तो उन्हें खुद से बुरा कोई नहीं मिला। यह आत्मनिरीक्षण और आत्मशुद्धि का संदेश देता है।

3. दोहा:

“धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥”

अर्थ:

कबीर इस दोहे में धैर्य का महत्व बताते हैं। वे कहते हैं कि हर चीज अपने समय पर होती है, जैसे माली चाहे सौ घड़ा पानी भी सींचे, फल तो ऋतु आने पर ही मिलेगा।

4. दोहा:

“निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय॥”

अर्थ:

कबीर कहते हैं कि निंदक को अपने पास ही रखना चाहिए, क्योंकि वह बिना पानी और साबुन के ही आपके स्वभाव को निर्मल कर देगा। यह आलोचना को सकारात्मक रूप में लेने का संदेश देता है।

5. दोहा:

“चलती चाकी देख के, दिया कबीरा रोय।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय॥”

अर्थ:

कबीर इस दोहे में जीवन की अनिश्चितता को व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं कि जैसे चक्की के दो पाटों के बीच में कोई साबुत नहीं बचता, वैसे ही जीवन की कठिनाइयों में कोई सुरक्षित नहीं रहता।

6. दोहा:

“कबीरा खड़ा बजार में, सबकी मांगे खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर॥”

अर्थ:

कबीर कहते हैं कि वे बाजार में खड़े होकर सबकी भलाई की कामना करते हैं। वे न किसी से दोस्ती करते हैं, न किसी से दुश्मनी। यह तटस्थता और सबके प्रति समान भावना का प्रतीक है।

7. दोहा:

“माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर॥”

अर्थ:

कबीर कहते हैं कि माला फेरते-फेरते युग बीत गए, लेकिन मन का फेर नहीं गया। वे सुझाव देते हैं कि हाथ की माला छोड़कर मन की माला को फेरो। यह आंतरिक साधना और आत्मसंयम का संदेश देता है।

8. दोहा:

“प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा परजा जेहि रुचै, शीश देइ लै जाय॥”

अर्थ:

कबीर कहते हैं कि प्रेम न तो खेतों में उगाया जा सकता है और न ही बाजार में बेचा जा सकता है। इसे राजा और प्रजा दोनों को अपने सिर का बलिदान देकर ही प्राप्त किया जा सकता है। यह प्रेम की महानता और उसके लिए त्याग की आवश्यकता को दर्शाता है।

9. दोहा:

“तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई।
सब सिद्धी सहजे पावै, जे मन जोगी होय॥”

अर्थ:

कबीर कहते हैं कि तन को जोगी बनाना आसान है, लेकिन मन को जोगी बनाना दुर्लभ है। वे कहते हैं कि जो मन को जोगी बना लेता है, वही सच्ची सिद्धि प्राप्त करता है।

10. दोहा:

“जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहीं।
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माहीं॥”

अर्थ:

कबीर कहते हैं कि जब वे अहंकार में थे तब ईश्वर नहीं थे, लेकिन अब जब ईश्वर हैं तो उनका अहंकार नहीं है। यह अहंकार के मिटने और आत्मज्ञान के प्रकाश में आने का संकेत है।

11. दोहा:

“पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजू पहार।
ताते यह चाकी भली, पीस खाय संसार॥”

अर्थ:

कबीर कहते हैं कि यदि पत्थर पूजने से भगवान मिलते हैं, तो मैं पहाड़ को पूजता। वे कहते हैं कि इससे तो चक्की ही भली है, जो संसार को पीसकर आटा देती है। यह मूर्ति पूजा के व्यर्थता को दर्शाता है।

12. दोहा:

“कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीर।
जो पर पीर न जानई, सो काफिर बेपीर॥”

अर्थ:

कबीर कहते हैं कि सच्चा पीर वही है जो दूसरों की पीड़ा को जानता है। जो दूसरों की पीड़ा को नहीं जानता, वह बेपीर और काफिर है। यह सहानुभूति और दूसरों के दुख को समझने का संदेश है।

13. दोहा:

“सुखिया सब संसार है, खाये और सोये।
दुखिया दास कबीर है, जागे और रोये॥”

अर्थ:

कबीर कहते हैं कि पूरा संसार सुखी है क्योंकि वे खाते हैं और सोते हैं, जबकि कबीर दुखी हैं क्योंकि वे जागते हैं और रोते हैं। यह संतों की व्यथा और उनके जागरूकता को दर्शाता है।

14. दोहा:

“कबीर माला मन की, और न फेराई।
माला फेरत जुग गया, मन का फेर न फेराई॥”

अर्थ:

कबीर कहते हैं कि मन की माला को छोड़कर कोई दूसरी माला नहीं फेरनी चाहिए। माला फेरते-फेरते युग बीत गए, लेकिन मन का फेर नहीं बदला। यह आंतरिक साधना और आत्मसंयम का संदेश देता है।

15. दोहा:

“दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय।
बिना जीव के श्वास से, लोह भस्म हो जाय॥”

अर्थ:

कबीर कहते हैं कि कमजोर व्यक्ति को कभी नहीं सताना चाहिए, क्योंकि उसकी कराह बहुत भारी होती है। वे कहते हैं कि कमजोर की हाय से बिना आग के भी लोहे को भस्म कर सकती है। यह कमजोर और असहाय व्यक्तियों के प्रति संवेदनशीलता का संदेश देता है।

16. दोहा:

“कबीर बादल प्रेम का, हम पर बरसा आई।
अंतरि भीगी आतमा, हरि भई बनराई॥”

अर्थ:

कबीर कहते हैं कि प्रेम का बादल उन पर बरसने आया है, जिससे उनकी आत्मा भीग गई है और वे हरी-भरी हो गई है। यह प्रेम के प्रभाव और उसकी शीतलता का संदेश देता है।

17. दोहा:

“तिनका कबहुं ना निंदिये, जो पाँवन तर होय।
कबहि उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय॥”

अर्थ:

कबीर कहते हैं कि कभी भी छोटे से तिनके की निंदा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जब वह उड़कर आँखों में पड़ता है, तो बहुत पीड़ा होती है। यह छोटे और कमजोर चीजों के प्रति सम्मान का संदेश देता है।

18. दोहा:

“सुर नर मुनि सब की यह रीति।
स्वाँति पथिक जल पाईए, बात गाल की प्रीति॥”

अर्थ:

कबीर कहते हैं कि यह सुर, नर और मुनियों की रीति है कि वे सत्य के मार्ग पर चलते हुए जल (सत्य) प्राप्त करते हैं। वे कहते हैं कि सत्य की ओर चलने वाला व्यक्ति हमेशा प्रेम और सहानुभूति की बात करता है। यह सत्य और प्रेम के महत्व का संदेश देता है।

19. दोहा:

“कबीर तहाँ न जाइए, जहाँ जन्म के जोय।
साँप तहाँ क्या करी, जहाँ पैर ही न होय॥”

अर्थ:

कबीर कहते हैं कि वहाँ कभी नहीं जाना चाहिए जहाँ जन्म की गिनती की जाती है। वे कहते हैं कि वहाँ साँप क्या करेगा जहाँ पैर ही नहीं होते। यह जन्म और जाति के भेदभाव का विरोध करता है।

20. दोहा:

“अक्षर अनमोल है, जो कोई जानै बोल।
हीरा जनम अमोल है, जो कोई जानै तोल॥”

अर्थ:

कबीर कहते हैं कि अक्षर (शब्द) अनमोल हैं, यदि कोई उनका सही उपयोग करना जानता है। वे कहते हैं कि जीवन भी अनमोल है, यदि कोई उसकी सही कीमत समझता है। यह सही शब्दों और सही जीवन मूल्य का संदेश देता है।

निष्कर्ष

संत कबीर दास के दोहे (Kabir ke Dohe)जीवन के हर पहलू को छूते हैं और हमें गहरे अर्थ प्रदान करते हैं। Kabir ke Dohe न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक संदेश देते हैं, बल्कि वे सामाजिक सुधार और मानवीय मूल्यों का भी प्रचार करते हैं। उनकी सरलता, स्पष्टता और गहनता आज भी हमें मार्गदर्शन प्रदान करती हैं और हमें जीवन को सही दृष्टिकोण से जीने की प्रेरणा देती हैं। संत कबीर के दोहे (Kabir ke Dohe) हमें आत्मनिरीक्षण, आत्मशुद्धि, सहानुभूति, धैर्य और प्रेम का महत्व सिखाते हैं, जो हमारे जीवन को सच्चे अर्थों में सफल और समृद्ध बनाते हैं।

Exit mobile version