eklavya ka angutha

गुरुदक्षिणा या धोखा : क्यों एकलव्य को अपना अंगूठा काटना पड़ा ??Eklavya’s Thumb: A Sacrifice of Loyalty in the Name of Guru’s Word

निषाद पुत्र एकलव्य (Eklavya Ka angutha)

महाभारत की प्राचीन कहानी में, एकलव्य नाम का एक लड़का था यह तो हम सब जानते है लेकिन; एकलव्य को अपना अंगूठा क्यों काटना पड़ा इससे जुड़ी कहानी हम इस लेख के माध्यम से जानेगे। आईये जानते है क्या वजह थी जिसके कारण एकलव्य को अपना अंगूठा (Eklavya ka angutha) काटना पड़ा ।

वह वास्तव में गुरु द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या सीखना चाहता था, लेकिन जहाँ उसका जन्म हुआ था, उसके कारण गुरु द्रोणाचार्य ने उसे शिक्षा देने से मना कर दिया । एकलव्य एक निषाद पुत्र थे इस कारण गुरु द्रोणाचार्य ने उन्हें शिक्षा देने से इंकार कर दिया था । गुरु द्रोणाचार्य कौरवों एवं पांडवो के गुरु थे । इस घटना ने एक दूसरी घटना को जन्म दिया जिसके परिणाम स्वरुप एकलव्य को अपना अंगूठा काटना पड़ा, आईये इस लेख के माध्यम से जानते है वो प्रसंग जिसने एक धनुर्धारी को अपना अंगूठा काटने पर मजबूर कर दिया , गुरुदक्षिणा  एवं एकलव्य का अंगूठा ( Eklavya ka angutha).

माटी के गुरु

एकलव्य ने इस बात को अपने ऊपर हावी न होने दिया और जंगल में द्रोणाचार्य की एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और अपने काल्पनिक गुरु से सीखते हुए प्रतिदिन तीरंदाजी का अभ्यास किया। एक दिन, पांडवों को एकलव्य की अविश्वसनीय तीरंदाजी कौशल का पता चला। यह इतना अच्छा था कि इसने सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन को भी पीछे छोड़ दिया। इससे अर्जुन चिंतित हो गए और वे एकलव्य का रहस्य जानने के लिए निकल पड़े।

गुरु और गुरुदक्षिणा में लिया एकलव्य का अंगूठा (Eklavya ka angutha)

जब द्रोणाचार्य को एहसास हुआ कि एकलव्य का कौशल अर्जुन को चुनौती दे सकता है तो वह बहुत परेशान हो गए क्यूंकि गुरु द्रोणाचार्य अर्जुन को सर्वोच्च तीरंदाज बनाना चाहते थे , इस बात का हल निकलने के लिए उन्होंने एक मुश्किल समाधान निकाला। द्रोणाचार्य को बुलाया और उनसे पुछा की इतनी कुशल तीरंदाजी उन्होंने किनसे सीखी है ,अपने गुरु का नाम बताओ?

यह प्रश्न सुनकर एकलव्य ने कहा गुरुवर , मैंने यह शिक्षा आपसे ही ली है, जब आपने मुझे अपना शिष्य बनाने से मना कर दिया तब मैंने माटी से आपकी प्रतिलिपि मूरत बनायीं और उसके समक्ष शिक्षा ली ।

यह सुनकर गुरु द्रोणाचार्य को एक युक्ति सूझी और उन्होंने शिक्षण शुल्क के रूप में एक उपहार, एकलव्य का दाएं हाथ का अंगूठा मांगा (Eklavya ka angutha)। दुःख की बात है कि एकलव्य परिणाम जाने बिना ही सहमत हो गया। अपने अंगूठे का बलिदान देकर एकलव्य ने अपने काल्पनिक गुरु के प्रति अविश्वसनीय निष्ठा दिखाई।

कहानी से शिक्षा

यह कहानी हमें अपने वादों पर खरा रहना सिखाती है, भले ही इसके लिए किसी महत्वपूर्ण चीज़ को छोड़ना ही क्यों न पड़े। एकलव्य का बलिदान , एकलव्य ने अपना अंगूठा ही गुरु के लिए काट दिया (Eklavya ka angutha) यह कहानी ,भक्ति और निष्ठा की एक कालजयी कहानी बन गयी।

कहानी को इंग्लिश में पढ़ने के लिए Link  पर Click करें ।

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