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हिन्दू विवाह || Understanding Hindu Marriage: Traditions and Meanings

Hindu Marriage  के सुन्दर परम्पराएँ और उनके अर्थ


Hindu Marriage  केवल एक सामाजिक अनुबंध नहीं है, बल्कि यह दो आत्माओं का मिलन है जो सात जन्मों तक के लिए एक-दूसरे के साथ बंधते हैं। इस अवसर पर अनेक रस्में और परम्पराएँ निभाई जाती हैं, जो हर क्षेत्र में अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन सभी का उद्देश्य एक ही होता है – दंपति के जीवन को सुखमय, समृद्ध और आनंदमय बनाना। इस लेख में, हम हिन्दू विवाह (Hindu Marriage) की कुछ प्रमुख और सुन्दर परम्पराओं और उनके पीछे के गहरे अर्थों की चर्चा करेंगे।

1. रोका और सगाई (Engagement)

रोका और सगाई हिन्दू विवाह की पहली औपचारिक रस्म होती है, जहाँ दूल्हा और दुल्हन के परिवार एक-दूसरे को स्वीकार करते हैं। यह रस्म परिवारों के बीच एक सामाजिक अनुबंध का प्रतीक है और इसमें आशीर्वाद और उपहारों का आदान-प्रदान होता है।

अर्थ: यह रस्म दो परिवारों के बीच सामंजस्य और विश्वास को मजबूत करती है और विवाह की यात्रा की शुरुआत का संकेत देती है।

2. मेहंदी (Henna Ceremony)

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मेहंदी की रस्म दुल्हन के हाथों और पैरों पर मेहंदी (हिना) लगाने की प्राचीन परंपरा है। यह रस्म विवाह से एक या दो दिन पहले होती है और इसमें दुल्हन की सहेलियाँ और परिवार की महिलाएँ शामिल होती हैं।

अर्थ: मेहंदी सौभाग्य और शुभता का प्रतीक है। यह माना जाता है कि मेहंदी जितनी गहरी और सुन्दर रंग लाती है, दुल्हन का वैवाहिक जीवन उतना ही खुशहाल होता है।

3. हल्दी (Haldi Ceremony)

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हल्दी की रस्म में दूल्हा और दुल्हन के शरीर पर हल्दी का पेस्ट लगाया जाता है। यह रस्म विवाह के दिन की सुबह या एक दिन

पहले आयोजित की जाती है। इसमें परिवार के सदस्य और मित्रगण शामिल होते हैं।

अर्थ: हल्दी का पेस्ट त्वचा को निखारने और शुद्ध करने के लिए लगाया जाता है। यह रस्म नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने और सौभाग्य लाने के लिए की जाती है।

4. संगीत (Sangeet)

संगीत की रस्म विवाह के कुछ दिन पहले आयोजित की जाती है, जिसमें दूल्हा और दुल्हन के परिवार एक साथ नाचते-गाते हैं। इसमें गीत, नृत्य और मनोरंजन का माहौल होता है।

अर्थ: संगीत रस्म उत्सव और आनंद का प्रतीक है। यह दोनों परिवारों के बीच घनिष्ठता और हर्षोल्लास को बढ़ावा देती है।

5. वरमाला (Exchange of Garlands)

विवाह समारोह के दौरान, दूल्हा और दुल्हन एक-दूसरे को माला पहनाते हैं। इसे वरमाला या जयमाला कहा जाता है।

अर्थ: वरमाला का अर्थ है एक-दूसरे को स्वीकार करना और अपने जीवन साथी के रूप में चुनना। यह प्रेम और सम्मान का प्रतीक है।

6. कंकण बंधन (Tying the Sacred Knot)

यह रस्म विवाह के दौरान की जाती है, जिसमें दूल्हा और दुल्हन के हाथों पर कंकण (धागा) बांधा जाता है। इसे पुरोहित द्वारा मंत्रोच्चारण के साथ सम्पन्न किया जाता है।

अर्थ: कंकण बंधन बुरी आत्माओं और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा का प्रतीक है। यह दंपति के बंधन को और मजबूत करने के लिए किया जाता है।

7. मंडप प्रवेश (Entry into the Mandap)

विवाह समारोह एक विशेष मंडप में आयोजित किया जाता है, जो चार खंभों वाला संरचना होती है। दुल्हन अपने पिता या भाई के साथ मंडप में प्रवेश करती है, जहाँ दूल्हा पहले से मौजूद होता है।

अर्थ: मंडप जीवन के चार महत्वपूर्ण चरणों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) का प्रतीक है। मंडप में प्रवेश करना नई जिम्मेदारियों और जीवन की नई यात्रा की शुरुआत का प्रतीक है।

8. अग्नि की परिक्रमा (Circling the Sacred Fire)

विवाह के दौरान, दूल्हा और दुल्हन अग्नि के चारों ओर सात बार परिक्रमा करते हैं। इसे सप्तपदी कहते हैं। प्रत्येक परिक्रमा के साथ एक वचन लिया जाता है।

सप्तपदी (Seven Sacred Steps)

अर्थ: अग्नि हिन्दू धर्म में पवित्रता और साक्षी का प्रतीक है। सप्तपदी के दौरान लिए गए सात वचन विवाह के सात आधारभूत सिद्धांतों का प्रतीक हैं:

  1. पहला फेरा: इस फेरे में दंपति भोजन और पोषण के लिए प्रार्थना करते हैं। वे एक-दूसरे को जीवनभर भोजन प्रदान करने का वचन देते हैं।
  2. दूसरा फेरा: इसमें वे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति की प्रार्थना करते हैं। वे जीवन की हर चुनौती में एक-दूसरे का समर्थन करने का वचन देते हैं।
  3. तीसरा फेरा: वे  सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। वे एक साथ मिलकर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने का वचन देते हैं।
  4. चौथा फेरा: इस फेरे में वे एक सुखी और स्वस्थ परिवार के लिए प्रार्थना करते हैं। वे अपने परिवार की भलाई के लिए समर्पित रहने का वचन देते हैं।
  5. पाँचवाँ फेरा: इसमें वे अच्छी सेहत और दीर्घायु की प्रार्थना करते हैं। वे एक-दूसरे की देखभाल करने का वचन देते हैं।
  6. छठा फेरा: वे आपसी प्रेम, सम्मान और मित्रता की प्रार्थना करते हैं। वे एक-दूसरे के सबसे अच्छे मित्र बनने का वचन देते हैं।
  7. सातवाँ फेरा: अंत में वे हमेशा साथ रहने और एक-दूसरे के प्रति वफादार रहने का वचन देते हैं। वे जीवनभर एक-दूसरे के साथ सच्चे बने रहने का वादा करते हैं।

9. सिन्दूर और मंगलसूत्र (Sindoor and Mangalsutra)

विवाह के अंतिम चरण में, दूल्हा अपनी दुल्हन की मांग में सिन्दूर भरता है और उसे मंगलसूत्र पहनाता है।

अर्थ: सिन्दूर और मंगलसूत्र दुल्हन के वैवाहिक जीवन और सौभाग्य का प्रतीक हैं। यह विवाह के बंधन और प्रेम की निशानी हैं।

10. कन्‍यादान (Giving Away the Bride)

कन्‍यादान हिन्दू विवाह की एक प्रमुख रस्म है, जिसमें दुल्हन के पिता अपनी बेटी का हाथ दूल्हे के हाथ में सौंपते हैं।

अर्थ: कन्‍यादान एक पिता द्वारा अपनी बेटी को एक नई जिम्मेदारी और परिवार को सौंपने का प्रतीक है। यह विश्वास और स्नेह का प्रतीक है।

11. अशिर्वाद (Blessings)

विवाह समारोह के अंत में, दूल्हा और दुल्हन अपने बड़ों और परिवार के सदस्यों से आशीर्वाद लेते हैं।

अर्थ: आशीर्वाद नई जोड़ी के सुखमय और समृद्ध जीवन के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। यह समाज और परिवार के समर्थन और प्रेम का प्रतीक है।

12. विदाई (Bidai)

विदाई विवाह की सबसे भावनात्मक रस्म होती है, जिसमें दुल्हन अपने माता-पिता के घर से विदा होकर अपने ससुराल जाती है।

अर्थ: विदाई एक नए जीवन की शुरुआत और पुराने जीवन को छोड़ने का प्रतीक है। यह दुल्हन की नई जिम्मेदारियों और उसके नए परिवार में समर्पण का प्रतीक है।

हिन्दू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act)

हिन्दू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) 1955 में पारित किया गया था, जो हिन्दू विवाह की वैधानिकता और उनके अधिकारों को सुनिश्चित करता है। इस अधिनियम के तहत विवाह की कुछ प्रमुख शर्तें निम्नलिखित हैं:

  1. आयु सीमा: विवाह के लिए दूल्हे की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और दुल्हन की न्यूनतम आयु 18 वर्ष होनी चाहिए।
  2. सहमति: विवाह दोनों पक्षों की सहमति से होना चाहिए। जबरदस्ती या धोखे से किया गया विवाह अवैध माना जाता है।
  3. पूर्व विवाह: विवाह तभी वैध माना जाएगा जब दोनों पक्ष अविवाहित हों, या यदि पहले विवाह हो चुका है तो वैध रूप से तलाकशुदा हों या पूर्व पति/पत्नी का निधन हो चुका हो।
  4. वर्जित रिश्ते: विवाह के लिए कुछ रिश्ते वर्जित होते हैं। निकट संबंधियों के बीच विवाह अवैध माना जाता है, जब तक कि प्रथागत कानून इसकी अनुमति न दें।
  5. पंजीकरण: विवाह का पंजीकरण महत्वपूर्ण है। यह वैवाहिक प्रमाण पत्र के रूप में कार्य करता है और कानूनी मामलों में सहायक होता है।

अर्थ: Hindu  Marriage Act  1955 विवाह के कानूनी मानद दर्शता है और हिन्दू समाज में विवाह संस्कृति को समायोजित करने में मदद करता है। इस अधिनियम के द्वारा, विवाह की प्रक्रिया में न्याय, सामाजिक समर्थन और समानता का प्रोत्साहन किया जाता है।

इस संस्कृति और परंपराओं के बावजूद, हिन्दू विवाह एक सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इसमें विवाह से जुड़े अधिकार, कर्तव्य और सामाजिक प्रतिबद्धता को साझा किया जाता है।

सात फेरे या सप्तपदी, जो विवाह के महत्वपूर्ण हिस्सा है, एक प्रेम, समर्थन और साझेदारी का प्रतीक है। यह सात वचन नए जीवन की यात्रा में एक-दूसरे के साथ खड़े होने की घोषणा करते हैं, जिसमें प्रेम, समर्थन, संघर्ष, सफलता और संघर्ष की भावना समाहित होती है।

Hindu  Marriage में परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ-साथ, यह अधिनियम भी समाज में उचितता, सामाजिक न्याय और समर्थता को सुनिश्चित करता है। यह न केवल विवाह संस्कृति को सुरक्षित बनाता है, बल्कि विवाहीत जोड़े को उनके अधिकारों की सुरक्षा और समर्थन भी प्रदान करता है।

इस रीति-रिवाजों और अधिनियम के माध्यम से, हिन्दू विवाह वास्तव में एक समृद्ध और सामाजिक संबंध की स्थापना के लिए एक अद्वितीय उपाय है। यह न केवल दो व्यक्तियों को बांधता है, बल्कि समाज को भी एकजुट रखता है और उसे साझा दुख-सुख का सामंजस्य और समर्थन प्रदान करता है।

निष्कर्ष

हिन्दू विवाह (Hindu Marriage) की रस्में केवल परंपराएं नहीं हैं, बल्कि उनके पीछे गहरे अर्थ और मूल्य छिपे होते हैं। यह रस्में दंपति को जीवन की नई यात्रा पर मार्गदर्शन करती हैं और उन्हें समाज और परिवार से जोड़ती हैं। हिन्दू विवाह की इन सुन्दर परम्पराओं में न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक भावनाएँ होती हैं, बल्कि यह प्रेम, सम्मान, और सामंजस्य का भी प्रतीक हैं।

विवाह की इन रस्मों में हमें भारतीय संस्कृति की समृद्धि और विविधता का अनुभव होता है, जो जीवन को और भी अधिक रंगीन और सार्थक बनाती हैं। हर रस्म, हर परंपरा, एक नई सीख, एक नया संदेश लेकर आती है, जो नवविवाहित जोड़े को जीवनभर प्रेरित और मार्गदर्शित करती है।

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