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Toggleवाचस्पति मिश्र की कहानी
वाचस्पति मिश्र, एक महान विद्वान थे, जिनका जन्म मगध (आज का बिहार) के मिथिला क्षेत्र में 900 से 980 ईस्वी के बीच हुआ था। उनकी माँ, वत्सला ने अकेले ही उनका पालन-पोषण किया, जो उनके लिए काफी कठिन था। वाचस्पति जब बड़े हुए, तो उनकी शादी की बात चली। उनके लिए एक युवा दुल्हन मिल गई और वत्सला ने वाचस्पति से इस बारे में बात की।
वाचस्पति का संकल्प और विवाह
वाचस्पति ने अपनी माँ से कहा, “मेरा एकमात्र उद्देश्य वेदांत सूत्र या ब्रह्म सूत्र पर एक टिप्पणी लिखना है। शास्त्र मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण और प्रिय हैं, और यह टिप्पणी मेरी देश की सेवा होगी। एक बार जब मैं इस कार्य को शुरू करूंगा, तो मैं पूरी तरह इसमें डूब जाऊंगा और पति या पिता के कर्तव्यों को निभाने में सक्षम नहीं रहूंगा।
आप यह बात वधू पक्ष को बता दें और इतना और इसके बाद अगर वो स्त्री मुझसे शादी करना चाहे तोह आप निर्णय लें , लेकिन माँ यह सब सुनने के बाद भी क्या आप चाहती हैं कि मेरी शादी हो?”
माँ की चिंता और लड़की का निर्णय
वत्सला अपने बेटे के इस फैसले से चकित थीं। उन्होंने सोचा कि वाचस्पति की शादी करना और एक लड़की का जीवन बर्बाद करना व्यर्थ होगा। लेकिन उन्होंने अपनी झिझक के बावजूद बेटे की राय दुल्हन के पिता से साझा की। सभी हैरान थे। लड़की के पिता ने वाचस्पति की स्पष्टता, विनम्रता और ईमानदारी की सराहना की और अपनी बेटी की राय जानने के लिए पूछा। युवा लड़की ने कहा, “मैं उनसे विवाह करूंगी और उनकी शर्त का पालन करूंगी।”
विवाह और अध्ययन का समर्पण
वाचस्पति प्रसन्न हुए। उन्होंने महसूस किया कि वह लड़की विशेष है, क्योंकि उसने सारी कठिनाइयों को जानने के बावजूद उन्हें चुना था। इस जोड़े का विवाह व्यास पूर्णिमा के शुभ दिन पर हुआ। विवाह के बाद, वाचस्पति ने तुरंत अपने भाष्य लेखन का काम शुरू कर दिया। उनकी माँ वत्सला उनकी हर ज़रूरत का ख्याल रखतीं, जबकि उनकी पत्नी चुपचाप यह सब देखती।
माँ का निधन और पत्नी की निस्वार्थ सेवा
वर्ष बीतते गए और वाचस्पति अपने काम में डूबे रहे। कुछ वर्षों के बाद उनकी माँ का देहांत हो गया। अब उनकी पत्नी ने अपने पति की देखभाल का जिम्मा संभाल लिया, जो अपनी शारीरिक ज़रूरतें बहुत कम रखते थे – स्नान, भोजन और कुछ घंटे की नींद।
भुला दी गई पत्नी (Bhamati) का निस्वार्थ समर्पण
कई वर्षों तक उनकी पत्नी ने बिना किसी अपेक्षा के उनकी सेवा की। उन्होंने अपने ताड़पत्रों पर लेखन जारी रखा, दीपक में हमेशा तेल भरा रहता, कपड़े धोये जाते, समय पर ताज़ा भोजन परोसा जाता और काम के दौरान कभी भी वाचस्पति को परेशान नहीं किया जाता। वाचस्पति ने कभी सोचा ही नहीं कि उनकी कितनी अच्छी देखभाल की जाती है।
काम की पूर्णता और पहचान का क्षण
एक रात आख़िरकार उन्होंने अपनी टिप्पणी पूरी कर ली। वाचस्पति ने कलम नीचे रख दी और खड़े हो गए। वह परमानंद में थे! उनके जीवन का काम पूरा हुआ। धीमी रोशनी में उन्होंने कमरे के कोने में एक बूढ़ी औरत को सोते हुए देखा। हल्की सी आहट पर उसकी नींद खुल गई। वाचस्पति ने उससे पूछा, “बूढ़ी औरत, तुम कौन हो? तुम इस समय मेरे कमरे में क्या कर रही हो?”
पत्नी (Bhamati) का परिचय और आत्मज्ञान
“मैं आपकी पत्नी हूँ। आपने दशकों पहले मुझसे शादी की थी। इस सारे समय, आप लिखने में इतने व्यस्त रहे कि मैंने कभी आपको परेशान नहीं किया।”
वाचस्पति स्तब्ध रह गए। उन्हें अपनी सुंदर युवा दुल्हन की धुंधली सी याद आई, जो अब एक बूढ़ी महिला बन चुकी थी। क्या सचमुच इतना समय बीत गया था? उन्होंने एक तेल के बर्तन में अपना प्रतिबिंब देखा और खुद को पहचान नहीं पाए – यह एक बुजुर्ग आदमी का चेहरा था।
भुला दी गई पत्नी का सम्मान
वाचस्पति अपनी पत्नी (Bhamati) के पास गए और उसके हाथों को देखा। उन्हें याद आया कि ये वही हाथ थे जो उनके पास उनका भोजन परोसते और दीपक में तेल भरते थे। वे Bhamati के हाथों से परिचित थे, लेकिन चेहरे से नहीं। आंसू उनके गालों से बहने लगे। “मैंने तुम्हारे साथ अन्याय किया है। मैंने अपने कोई भी कर्तव्य तुम्हारे प्रति पूरा नहीं किया, लेकिन तुमने सब कुछ निभाया। मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे तुम जैसी पत्नी मिली जिसने मुझे बिना शर्त प्यार दिया, धैर्य रखा और बड़े दिल से व्यवहार किया। तुम सचमुच असाधारण हो। क्या मैं तुम्हारा नाम जान सकता हूँ?”
Bhamati : भुला दी गई पत्नी का नाम
Bhamati मुस्कुराई और कहा, “मैंने तुम्हारी शर्त मानकर तुमसे शादी की थी, प्रिय पति। मुझे पता था कि जब तुम दर्शनशास्त्र में इतनी ऊंचाइयां हासिल कर लोगे, तो तुम्हें दयालुता और स्नेह के साथ देखभाल करने के लिए किसी की जरूरत होगी, और मैंने वही किया जो मैं कर सकती थी। मेरा नाम भामती (Bhamati) है।”
अंतिम सम्मान और सच्ची पहचान
वाचस्पति ने सिर हिलाया और अपनी मेज पर वापस चले गए। उन्होंने कलम उठाई और अपनी टिप्पणी का पहला पृष्ठ खोला, जिसे उपयुक्त शीर्षक के लिए खाली रखा गया था। उन्होंने कांपते हाथों से लिखा – “भामती”(Bhamati)। वाचस्पति ने अपनी पत्नी की ओर मुख करके कहा, “मैंने अपने काम का नाम तुम्हारे नाम पर रखा है। जो कोई भी इसे पढ़ेगा वो मुझे याद रखे या ना रखे , लेकिन वो तुम्हें जरूर याद रखेंगे।
मनुष्य के प्रत्येक महान कार्य के पीछे सदैव एक ऐसी महिला का अस्तित्व होता है जो बिना शर्त प्यार करती है और अधिक पहचान की हकदार है। तुम दुनिया को यह बताने के लिए सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हो कि महिलाएं इतिहास में इन कार्यों से कहीं अधिक महान हैं।”