देवी कुंती और नारद मुनि का संवाद
जब बीमारी की वजह से राजा पांडु का निधन हो गया, तो उनकी पत्नी कुंती अपने पांच बच्चों (Yudhishtira, Bhima, Arjuna, Nakula and Sahadeva; जिन्हे हम पांडवों के नाम से जानते हैं ) के साथ हस्तिनापुर में रहने के लिए चली गईं । वहां उनके पति के सौतेले भाई और शासक राजा धृतराष्ट्र, उनकी पत्नी गांधारी और उनके सौ पुत्रों के साथ (कौरव ) रहते थे ।
कुंती को लगता था कि उनके बच्चे केवल नाम के राजकुमार थे क्योंकि उनके पास न पिता था और न ही कोई राज्य । समय के साथ कुंती को धृतराष्ट्र के घर में एक अनचाहे मेहमान जैसा महसूस होने लगा और वह सोचने लगीं कि वह वहां कितने समय तक रह सकती हैं ।
एक दिन जब ऋषि नारद महल में आए, तो उन्होंने कुंती और गांधारी को बातचीत करते हुए देखा । बाद में उन्होंने महिलाओं से पूछा आप दोनों क्या चर्चा कर रही थीं ?
गांधारी ने कहा,” हम अपने बच्चों के कल्याण की बात कर रहे थे ।”
नारद ने उत्तर दिया,” तब आपको देवी पार्वती से प्रार्थना करनी चाहिए । आखिरकार वह सबसे अच्छी माँ हैं ।”
” कुंती ने पूछा,” हम अपने बच्चों के लिए उनसे कैसे प्रार्थना करें?”
“नारद ने कहा,” पार्वती जी के लिए गज गौरी की पूजा करें । यह पूजा भाद्रपद के महीने में, गणेश उत्सव से पहले और वर्षा ऋतु के अंत में की जानी चाहिए ।
” कुंती जी ने पूजा में रूचि दिखाते हुए पूछा,” पूजा के लिए क्या करना होगा?”
नारद ने कहा” देवी पार्वती की प्रतिमा के साथ एक सफेद हाथी की व्यवस्था करनी होगी और पूजा के लिए सभी आवश्यक सामग्री भी होनी चाहिए । गांधारी के पास सौ बच्चे हैं जो उनकी सहायता कर सकते हैं, लेकिन तुम्हारे पास केवल पांच बच्चे हैं । तुम्हें ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी ।”
ऐसी व्यवस्था करना कुंती जी को असंभव लग रहा था , इस वजह से उन्होंने सोचा की उनके लिए पूजा कर पाना संभव नहीं होगा । कुंती जी अपने पुत्रों के लिए नारद जी की बताई पूजा करना चाहती थी; परन्तु कोई उपाय ना समझ आने के कारन वह बहुत दुखी रहने लगी ।
Arjuna ने माता को दुखी एवं चिंतित देख कर उनसे उनकी चिंता का विषय पूछा ? कुंती जी ने अपने ह्रदय का हाल अर्जुन से कहा । माता की इच्छा जानकर अर्जुन को ऐरावत हाथी ( भगवन इन्द्र का हाथी ) का ख्याल आया जो स्वर्ग में रहता था ।
अर्जुन को स्वर्ग जाने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था तो उन्होंने स्वर्ग तक एक सीधी सीढ़ी बनाने का निर्णय किया ।
Arjuna ने किया स्वर्ग की सीधी सीढ़ी का निर्माण
Arjuna अपने धनुष और बाण के साथ शहर के बाहरी इलाके में गया । उसने वहां तीरों की सीढ़ी बनाकर स्वर्ग की ओर जाने वाले रास्ते का निर्माण किया और इंद्र के दरबार में प्रवेश किया ।
स्वर्ग में मनुष्य के प्रवेश से देवता चिंतित हो गए । Arjuna ने अपनी उपस्थिति की घोषणा की” मैं अर्जुन हूँ, और मैं इंद्र से मिलने की अनुमति चाहता हूँ ।”
इंद्र ने उस बहादुर, युवा योद्धा को पहचान लिया और स्नेहपूर्वक पूछा,” प्रिय अर्जुन, तुम क्या चाहते हो? मैं तुम्हें वह सब देने के लिए तैयार हूँ जो तुम चाहते हो, लेकिन यह सुनिश्चित करो कि अपना काम पूरा होने के बाद सीढ़ी नष्ट कर दो ।”
अर्जुन ने प्रणाम किया और कहा,” मेरी माँ गज गौरी पूजा करना चाहती है, और इसके लिए उन्हें एक हाथी की आवश्यकता है । क्या मुझे आपका हाथी उधार मिल सकता है? और क्या आप भगवान शिव और देवी पार्वती को हमारे घर आमंत्रित करने का आग्रह कर सकते हैं?” इंद्र मुस्कुराए और बोले,” हां, मैं उनसे पूछूंगा ।”
अर्जुन ऐरावत और पूजा के लिए आवश्यक सामग्री के साथ पृथ्वी पर लौट आया । पूजा के शुभ समय पर, पार्वती अपने पति शिव और उनके गणों के साथ पहुंचीं । वह ऐरावत पर सवार थीं और कुंती ने उन्हें ईमानदारी और भक्ति के साथ पूजा की ।
पार्वती जी द्वारा कुंती को आशीर्वाद
पूजा समाप्त होने के बाद, पार्वती जी ने कुंती को आशीर्वाद दिया तुम्हारे बच्चों के नाम हमेशा धर्म और अच्छे कर्मों की बात करते हुए याद किए जाएंगे । तुम्हारा पुत्र अर्जुन (Arjuna) , जिसने तुम्हारी इच्छा पूरी करने के लिए स्वर्ग तक का सफर तय किया, पार्थ या पृथा के पुत्र के रूप में जाना जाएगा ।
कुंती के दिल में एक आशा जगी और उन्होंने अपने सभी बच्चों के साथ मिलकर पूजा की सफलता आनंद लिया , और पार्वती जी के आशीर्वाद से पांडवों की प्रतिष्ठा और बढ़िया और वह अपनी धार्मिकता और सहायता के लिए विख्यात हो गए ।