rahimdas ke dohe

20 Rahimdas Ke Dohe : That Illuminate Life’s Path ||जीवन दर्शन और महत्ता || Hindi||

रहीमदास के दोहे: जीवन दर्शन और महत्ता

परिचय

अबदुर्रहीम ख़ान-ए-ख़ाना, जिन्हें हम सब रहीम के नाम से जानते हैं, भारतीय साहित्य और संस्कृति के महान कवि थे। उनका जन्म 1556 ई. में हुआ था और वे मुग़ल बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक थे। रहीम ने हिंदी साहित्य को अपने दोहों के माध्यम से समृद्ध किया। उनके दोहे सरल होते हुए भी गहरे अर्थ लिए हुए हैं और आज भी समाज में प्रासंगिक हैं।

इस लेख में हम रहीमदास के 20 प्रमुख दोहों (Rahimdas Ke Dohe) और उनके अर्थों पर चर्चा करेंगे।

रहीमदास का जीवन परिचय

रहीम का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था, लेकिन उनकी शिक्षाओं और कृतियों में सभी धर्मों और समाज के प्रति आदर और प्रेम का भाव था। वे अकबर के दरबार में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते थे और राजनीति के साथ-साथ साहित्य और कला में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान था। रहीम का व्यक्तित्व अद्वितीय था, और उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों को अपने दोहों के माध्यम से प्रकट किया।

Rahimdas Ke Dohe और उनके अर्थ

रहीम के दोहे (Rahimdas Ke Dohe) भारतीय समाज में गहराई से जुड़े हुए हैं। ये दोहे न केवल जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं, बल्कि हमें जीवन जीने की सही दिशा भी दिखाते हैं।

  1. “रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
    टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाए॥”

    अर्थ: रहीम कहते हैं कि प्रेम का धागा बहुत नाजुक होता है। इसे चटकाने पर यह फिर से नहीं जुड़ता और अगर जुड़ भी जाए तो उसमें गाँठ पड़ जाती है। यह दोहा प्रेम और संबंधों की नाजुकता को दर्शाता है और हमें सिखाता है कि संबंधों को संभालकर रखना चाहिए।

  2. “बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
    जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥”

    अर्थ: इस दोहे में रहीम कहते हैं कि जब वे दुनिया में बुराई खोजने निकले, तो उन्हें कोई बुरा नहीं मिला। लेकिन जब उन्होंने अपने दिल में झाँका, तो उन्हें स्वयं से बुरा कोई नहीं मिला। यह दोहा आत्मनिरीक्षण और आत्मसुधार का महत्व बताता है।

  3. “रहीमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
    जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि॥”

    अर्थ: रहीम कहते हैं कि बड़े लोगों की महत्ता को देखते हुए छोटे लोगों को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। जैसे सुई का उपयोग वह काम कर सकता है जो तलवार नहीं कर सकती। यह दोहा यह सिखाता है कि प्रत्येक व्यक्ति की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

  4. “तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
    कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहिं सुजान॥”

    अर्थ: इस दोहे में रहीम कहते हैं कि वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते और सरोवर अपने पानी को स्वयं नहीं पीते। इसी प्रकार, ज्ञानी व्यक्ति अपनी संपत्ति को दूसरों के कल्याण के लिए संचित करता है। यह दोहा उदारता और परोपकार का महत्व दर्शाता है।

  5. “रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
    पानी गए न ऊबरै, मोती, मानस, चून॥”

    अर्थ: रहीम कहते हैं कि पानी का महत्व बनाए रखें, क्योंकि बिना पानी सब कुछ सूना हो जाता है। पानी के बिना मोती, मनुष्य और चूना (lime) सब बेकार हो जाते हैं। यह दोहा जीवन में पानी के महत्व को दर्शाता है और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है।

  6. “कड़वी बात रहीम की, चुभत भले बहुत।
    तन में पीर प्रीतम बसत, मन में प्रेम कछु होत॥”

    अर्थ: रहीम कहते हैं कि उनकी कड़वी बातें भले ही बहुत चुभें, लेकिन उनमें भी सच्चाई और प्रेम छिपा होता है। इस दोहे में सत्य बोलने की महत्ता और उसकी कड़वाहट को स्वीकारने की सीख दी गई है।

  7. “जो बड़ेन को लघु कहे, नहीं रहीम घटी जाहि।
    गिरधर मुरलीधर कहे, कछु दुःख मानत नाहि॥”

    अर्थ: रहीम कहते हैं कि जो बड़े को छोटा कहता है, उससे बड़े का कोई नुकसान नहीं होता। जैसे भगवान श्रीकृष्ण को गिरधर मुरलीधर कहने से उनकी महत्ता में कोई कमी नहीं आती। यह दोहा यह सिखाता है कि दूसरों के मूल्यांकन से व्यक्ति की सच्ची पहचान नहीं बदलती।

  8. “रहिमन चुप ह्वै बैठिए, देखि दिनन के फेर।
    जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥”

    अर्थ: रहीम कहते हैं कि बुरे समय में शांत रहना चाहिए और धैर्य रखना चाहिए। जब अच्छे दिन आएंगे, तो काम बनने में देर नहीं लगेगी। यह दोहा धैर्य और संयम का महत्व दर्शाता है।

  9. “जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
    चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग॥”

    अर्थ: रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति उत्तम स्वभाव का होता है, वह बुरे संग से भी प्रभावित नहीं होता। जैसे चन्दन पर साँप लिपटते हैं, लेकिन चन्दन विषाक्त नहीं होता। यह दोहा अच्छे स्वभाव और सच्चे व्यक्तित्व की महत्ता को दर्शाता है।

  10. “रहीमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
    सुनी इठलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय॥”

    अर्थ: रहीम कहते हैं कि अपने मन की पीड़ा को अपने मन में ही छुपा कर रखना चाहिए। लोग सुनकर केवल उपहास करेंगे, लेकिन कोई आपकी पीड़ा को बाँटने नहीं आएगा। यह दोहा आत्मनियंत्रण और आत्मसम्मान की सीख देता है।

  11. “रहिमन अंसुवा नयन बिन, जिय दुख प्रकट करेहि।
    जाल परे जल जाए गुन, बिन जाल मरिहि न कोय॥”

    अर्थ: रहीम कहते हैं कि आँसुओं के बिना आँखें दिल की पीड़ा को प्रकट नहीं कर पातीं। जैसे मछली जाल में फँसकर मर जाती है, वैसे ही दिल की पीड़ा बिना आँसुओं के व्यक्त नहीं हो पाती। यह दोहा भावनाओं की अभिव्यक्ति का महत्व दर्शाता है।

  12. “रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
    जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि॥”

    अर्थ: रहीम कहते हैं कि बड़े लोगों की महत्ता को देखते हुए छोटे लोगों को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। जैसे सुई का उपयोग वह काम कर सकता है जो तलवार नहीं कर सकती। यह दोहा यह सिखाता है कि प्रत्येक व्यक्ति की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

  13. “रहिमन निज सुख दुख की, होहि जाचि अनजान।
    जो रंज करें रहिम, सब बट सब जान॥”

    अर्थ: रहीम कहते हैं कि अपने सुख-दुःख को अनजान बनाकर रखें। जो लोग आपकी पीड़ा को समझने में असमर्थ होते हैं, वे आपके दुःख का उपहास करेंगे। यह दोहा आत्मनियंत्रण और आत्मसम्मान की सीख देता है।

  14. “रहिमन बिनु कहेहि, काम आवत कठिनाई।
    बंदी बाँधि देहनी, सबको नहीं सिधाई॥”

    अर्थ: रहीम कहते हैं कि बिना कहे कोई भी कार्य करना कठिन होता है। बंदी को बाँधना सभी के लिए संभव नहीं है। यह दोहा संवाद और स्पष्टता की आवश्यकता को दर्शाता है।

  15. “रहिमन का करि साखि, पर दुख देख पतंग।
    जो पावक जलि मुए, करि जीवन के संग॥”

    अर्थ: रहीम कहते हैं कि किसी के दुख को देखकर स्वयं को दुखी करना व्यर्थ है। जैसे पतंगा आग में जलकर मर जाता है, वैसे ही दूसरों के दुख को अपने जीवन का हिस्सा बनाना सही नहीं है। यह दोहा आत्मनिर्भरता और संतुलन की सीख देता है।

  16. “जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
    चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग॥”

    अर्थ: रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति उत्तम स्वभाव का होता है, वह बुरे संग से भी प्रभावित नहीं होता। जैसे चन्दन पर साँप लिपटते हैं, लेकिन चन्दन विषाक्त नहीं होता। यह दोहा अच्छे स्वभाव और सच्चे व्यक्तित्व की महत्ता को दर्शाता है।

  17. “रहीमन चुप ह्वै बैठिए, देखि दिनन के फेर।
    जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥”

    अर्थ: रहीम कहते हैं कि बुरे समय में शांत रहना चाहिए और धैर्य रखना चाहिए। जब अच्छे दिन आएंगे, तो काम बनने में देर नहीं लगेगी। यह दोहा धैर्य और संयम का महत्व दर्शाता है।

  18. “तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
    कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहिं सुजान॥”

    अर्थ: इस दोहे में रहीम कहते हैं कि वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते और सरोवर अपने पानी को स्वयं नहीं पीते। इसी प्रकार, ज्ञानी व्यक्ति अपनी संपत्ति को दूसरों के कल्याण के लिए संचित करता है। यह दोहा उदारता और परोपकार का महत्व दर्शाता है।

  19. “रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
    जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि॥”

    अर्थ: रहीम कहते हैं कि बड़े लोगों की महत्ता को देखते हुए छोटे लोगों को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। जैसे सुई का उपयोग वह काम कर सकता है जो तलवार नहीं कर सकती। यह दोहा यह सिखाता है कि प्रत्येक व्यक्ति की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

  20. “रहिमन चुप ह्वै बैठिए, देखि दिनन के फेर।
    जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥”

    अर्थ: रहीम कहते हैं कि बुरे समय में शांत रहना चाहिए और धैर्य रखना चाहिए। जब अच्छे दिन आएंगे, तो काम बनने में देर नहीं लगेगी। यह दोहा धैर्य और संयम का महत्व दर्शाता है।

निष्कर्ष

रहीमदास के दोहे (Rahimdas Ke Dohe) सरल, सुगम और गहरे अर्थ वाले होते हैं। उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों और अपने दर्शन को दोहों के माध्यम से व्यक्त किया है। उनके दोहे हमें जीवन जीने की सही दिशा दिखाते हैं और हमें सिखाते हैं कि कैसे हम अपने संबंधों, भावनाओं और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को सही ढंग से निभा सकते हैं।

रहीमदास का योगदान हिंदी साहित्य और भारतीय संस्कृति में अनमोल है। उनके दोहे आज भी हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में सहायता करते हैं। उनके दोहों का अध्ययन और उनके अर्थों को समझना हमारे जीवन को अधिक समृद्ध और सार्थक बना सकता है।

रहीमदास के दोहे (Rahimdas Ke Dohe) हमें यह सिखाते हैं कि जीवन में धैर्य, संयम, आत्मनिरीक्षण और परोपकार का महत्व कितना अधिक है। वे हमें यह भी सिखाते हैं कि प्रेम, संबंध और समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारियाँ कैसी होनी चाहिए। उनके दोहों का पालन करके हम अपने जीवन को अधिक सकारात्मक और संतुलित बना सकते हैं।

उपसंहार

रहीमदास के दोहे (Rahimdas Ke Dohe) भारतीय समाज की एक अमूल्य धरोहर हैं। उनके दोहे हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और उन्हें सही ढंग से निभाने की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। उनके दोहों का अध्ययन और उनके अर्थों को समझना हमारे जीवन को अधिक समृद्ध और सार्थक बना सकता है। रहीमदास का योगदान हिंदी साहित्य और भारतीय संस्कृति में अमूल्य है और उनके दोहे हमें जीवन में सच्चाई, धैर्य और प्रेम का महत्व सिखाते हैं।

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