tulsidas

तुलसीदास: क्या आप जानते हैं उनके जीवन की प्रेरणादायक कहानी? Tulsidas ji Biography|| Nibandh

Tulsidas : संत का जीवन और समर्पण

जन्म और बाल्यकाल

Tulsidas जी का प्रामाणिक जन्मस्थान सोरों शूकरक्षेत्र, जिला कासगंज, उत्तर प्रदेश है। परन्तु इस विषय में मतभेद है एवं कुछ लोगों का मानना ​​है कि उनका जन्म राजापुर जिला चित्रकूट में हुआ था।

उत्तर प्रदेश के राजापुर गाँव में 1532 में एक अलौकिक संतान का जन्म हुआ, जिनका नाम रामबोला रखा गया, जो बाद में तुलसीदास के नाम से विख्यात हुए। उनके जन्म के समय कुछ अद्भुत घटनाएँ घटीं, जिन्हें लोगों ने चमत्कार के रूप में देखा। कहा जाता है कि तुलसीदास का जन्म 12 माह के बाद हुआ और तुलसीदास जी को जन्म के समय 32 दांत थे। जन्म के समय इनकी काया 5 वर्ष के बालक के सामान थी एवं इनका जन्म बिना रोये हुआ था, जिससे उनके माता-पिता और गाँव वाले चकित रह गए।

हालांकि, उनका बाल्यकाल कष्टों से भरा था। जन्म के कुछ समय बाद ही उनकी माता हुलसी का देहांत हो गया, और पिता आत्माराम दुबे ने भी उन्हें त्याग दिया। इस कठिन समय में, उनका पालन-पोषण चुनिया नामक एक दासी ने किया, जो तुलसीदास को अपना सब कुछ मानकर उनकी देखभाल करती थी। चुनिया ने तुलसीदास को संस्कार और भक्ति की पहली शिक्षा दी, जिससे उनका जीवन मार्ग प्रशस्त हुआ।

शिक्षा और साधना

तुलसीदास (Tulsidas) की शिक्षा-दीक्षा काशी (अब वाराणसी) में हुई। उन्होंने वहाँ प्रसिद्ध आचार्य शेष सनातन जी से संस्कृत और वेदों का गहन अध्ययन किया। तुलसीदास बाल्यकाल से ही एक तेजस्वी और विवेकशील बालक थे। शिक्षा के दौरान ही उन्हें संत नरहरिदास मिले, जिन्होंने उन्हें रामभक्ति की ओर प्रेरित किया। नरहरिदास की शिक्षा ने तुलसीदास के जीवन को नया मोड़ दिया और वे पूरी तरह से राम के भक्त बन गए।

विवाह और आध्यात्मिक मोड़

Tulsidas का विवाह रत्नावली नामक कन्या से हुआ। रत्नावली सुंदर और गुणी थी, और तुलसीदास उससे अत्यंत प्रेम करते थे। एक बार, जब रत्नावली अपने मायके गई हुई थी, तुलसीदास उनसे मिलने की व्याकुलता में आधी रात को नदी पार करके पहुँच गए। यह देखकर रत्नावली ने उनसे कहा, “यदि इतनी ही लगन भगवान राम के प्रति होती, तो आज तुम्हारा उद्धार हो जाता।” रत्नावली के इन शब्दों ने तुलसीदास के जीवन को पूरी तरह बदल दिया। उन्होंने इस घटना को अपने जीवन का निर्णायक मोड़ मानकर, संसारिक मोह-माया को त्याग दिया और पूरी तरह से रामभक्ति में लीन हो गए।

रामचरितमानस की रचना

Shri Ram Charit Manas
Image courtesy: Flipkart

रत्नावली के वचनों से प्रेरित होकर तुलसीदास ने अपना संपूर्ण जीवन रामभक्ति में समर्पित कर दिया। उन्होंने रामकथा को अवधी भाषा में लिखा, जिसे “रामचरितमानस” (Ramcharitmanas) कहा जाता है। रामचरितमानस ने रामायण (Ramayana) की कथा को जन-जन तक पहुँचाया और इसे हर वर्ग के लोगों के लिए सुगम और प्रिय बना दिया। इस महाकाव्य की सरल भाषा, सुंदर छंद और गहरे भावों ने इसे अमर बना दिया। तुलसीदास ने इस रचना के माध्यम से भगवान राम की लीला और मर्यादा पुरुषोत्तम के आदर्शों को स्थापित किया।

कठिनाइयाँ और साधना

तुलसीदास ने अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया। उन्होंने अनेक स्थानों पर यात्रा की और अनेक संतों से मिलकर ज्ञान अर्जित किया। काशी, चित्रकूट, और अयोध्या जैसे पवित्र स्थलों पर उन्होंने ध्यान और साधना की।

तुलसीदास की साधना और भक्ति की कहानियाँ आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं। कहा जाता है कि एक बार, जब तुलसीदास काशी में संकटमोचन मंदिर में थे, हनुमान जी ने उन्हें दर्शन दिए। हनुमान जी ने तुलसीदास को भगवान राम के दर्शन का वरदान दिया। तुलसीदास की भक्ति और साधना के कारण उन्हें कई बार भगवान राम के दिव्य दर्शन हुए।

संत और समाज सुधारक

तुलसीदास (Tulsidas) केवल एक संत नहीं थे, वे समाज सुधारक भी थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों और कुरीतियों का विरोध किया। उन्होंने जाति-पाति के भेदभाव को मिटाने का प्रयास किया और सभी को रामभक्ति की ओर प्रेरित किया। तुलसीदास ने अपने जीवन के माध्यम से दिखाया कि सच्ची भक्ति और समर्पण से हर कठिनाई को पार किया जा सकता है।

जीवन का अंत

तुलसीदास ने अपने जीवन के अंतिम समय तक रामभक्ति में ही समय बिताया। 1623 में काशी में उन्होंने इस संसार को त्याग दिया। उनके जाने के बाद भी उनकी रचनाएँ और भक्ति की महिमा अमर रही। उनके द्वारा रचित रामचरितमानस (Ramcharitmanas) आज भी लाखों लोगों के जीवन में प्रेरणा का स्रोत है।

उपसंहार

तुलसीदास का जीवन एक प्रेरणा है। उनकी साधना, भक्ति, और समाज सेवा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और समर्पण से हर कठिनाई को पार किया जा सकता है। रामचरितमानस ने भगवान राम की कथा को जन-जन तक पहुँचाया और इसे अमर बना दिया। तुलसीदास का नाम सदा के लिए इतिहास में अमर रहेगा, और उनकी भक्ति की ज्योति हमें हमेशा मार्गदर्शन करती रहेगी।

तुलसीदास जी के बारे में पाँच सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्न

  1. तुलसीदास जी का पूरा नाम क्या था और उनका जन्म कब हुआ था?
    • तुलसीदास जी का पूरा नाम गोस्वामी तुलसीदास था। उनका जन्म संवत 1532 में उत्तर प्रदेश के राजापुर गाँव में हुआ था।
  2. तुलसीदास जी ने रामचरितमानस (Ramcharitmanas) की रचना क्यों और कैसे की?
    • तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना भगवान राम की भक्ति को जन-जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से की। उन्होंने इसे अवधी भाषा में लिखा ताकि सामान्य जन भी इसे आसानी से समझ सकें। रत्नावली के वचनों से प्रेरित होकर, तुलसीदास जी ने अपना संपूर्ण जीवन रामभक्ति में समर्पित कर दिया और इस महाकाव्य की रचना की।
  3. तुलसीदास जी को भगवान राम और हनुमान जी के दर्शन कैसे हुए?
    • तुलसीदास जी की गहन भक्ति और साधना के फलस्वरूप उन्हें कई बार भगवान राम और हनुमान जी के दिव्य दर्शन हुए। विशेष रूप से, काशी के संकटमोचन मंदिर में हनुमान जी ने उन्हें दर्शन दिए और भगवान राम के दर्शन का वरदान दिया।
  4. तुलसीदास जी का समाज सुधार में क्या योगदान था?
    • तुलसीदास जी ने समाज में व्याप्त बुराइयों और कुरीतियों का विरोध किया। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से जाति-पाति के भेदभाव को मिटाने का प्रयास किया और सभी को रामभक्ति की ओर प्रेरित किया। उनकी रचनाएँ समाज सुधार का एक महत्वपूर्ण साधन बनीं।
  5. तुलसीदास जी की प्रमुख रचनाएँ कौन-कौन सी हैं?
    • तुलसीदास जी की प्रमुख रचनाओं में “रामचरितमानस”, “विनयपत्रिका”, “हनुमान चालीसा”, “कवितावली”, “गीतावली”, और “दोहावली” शामिल हैं। इन रचनाओं ने हिंदी साहित्य और भक्ति आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

 

Scroll to Top