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Satyabhama and the Parijat Tree: A Mythical Tale || जानिये आखिर क्यों किया सत्यभामा ने कृष्णा का दान ????

पारिजात वृक्ष और सत्यभामा (Satyabhama)की कथा


एक बार की बात है, समुद्र मंथन के दौरान कई अनमोल उपहार प्राप्त हुए, जिनमें से एक था पारिजात वृक्ष। इंद्र ने इस वृक्ष को अपने शाही उद्यान में लगाया, जहां इसके सफेद फूल लाल डंठल के साथ खिलते थे। ये फूल सुबह जल्दी खिलते थे और सूरज की पहली किरणें पड़ते ही जमीन पर गिर जाते थे।

इंद्र के उद्यान में पारिजात

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एक दिन, भगवान कृष्ण और उनकी पत्नी सत्यभामा (Satyabhama) इंद्र के पास गए। इंद्र ने उन्हें अपने विशेष अतिथि के रूप में स्वागत किया और उनकी पत्नी शची ने सत्यभामा को उद्यान दिखाया। सत्यभामा पारिजात के फूलों की सुंदरता और सुगंध से मोहित हो गईं।

सत्यभामा ने कृष्ण से अनुरोध किया, “प्रिय पति, आइए इस पेड़ की एक शाखा अपने घर ले चलें।” कृष्ण ने उत्तर दिया, “हमें अपने मेज़बान से ज़्यादा कुछ नहीं मांगना चाहिए।” यह कहकर उन्होंने बातचीत समाप्त कर दी।

सत्यभामा की इच्छाएं

घर लौटने के बाद भी सत्यभामा पारिजात के फूलों के बारे में ही सोचती रहीं। कुछ दिनों बाद, इंद्र ने कृष्ण को उपहार के रूप में पारिजात के कुछ फूल भेजे, जो उन्होंने अपनी दूसरी पत्नी रुक्मिणी को दे दिए।

यह देखकर ऋषि नारद सत्यभामा के पास गए और बोले, “क्या तुम्हें लगता है कि कृष्ण अपनी सभी पत्नियों को समान रूप से प्यार करते हैं?” Satyabhama ने गर्व से कहा, “नहीं, वह मुझसे सबसे ज्यादा प्यार करते हैं।”

नारद मुस्कुराए और बोले, “अगर ऐसा है, तो कृष्ण ने रुक्मिणी को पारिजात के फूल क्यों दिए?” सत्यभामा नाराज हो गईं और उन्होंने सोचा कि कृष्ण उनसे ज्यादा रुक्मिणी को प्यार करते हैं।

सत्यभामा (Satyabhama) की नाराजगी

सत्यभामा ने एक विशेष कक्ष में जाकर अपनी नाराजगी व्यक्त की। कृष्ण ने दरवाजा खटखटाया और सत्यभामा को मनाने का प्रयास किया, लेकिन सत्यभामा ने दरवाजा नहीं खोला। आखिरकार, कृष्ण ने सत्यभामा से कहा, “प्रिय, मैं तुम्हारा पति हूँ। दरवाजा खोलो।”

सत्यभामा ने दरवाजा खोला और कहा, “अगर तुम मुझसे सच्चा प्यार करते हो, तो मेरे बगीचे में पारिजात का पेड़ लगाओ। जब तक मुझे यह पेड़ यहाँ नहीं दिखता, मैं कुछ खाऊंगी या पीऊंगी नहीं।”

नारद का हस्तक्षेप

इस बीच, नारद इंद्र के पास गए और कहा,

“कृष्ण पारिजात के पेड़ के लिए अनुरोध करने आ रहे हैं।”

इंद्र ने कहा, “मैं पेड़ दूंगा, परन्तु धरती पर बोने पर यह कोई फल नहीं देगा।”

कृष्ण इंद्र से मिले और उन्होंने इंद्र से पारिजात की शाखा मांगी। इंद्र ने शर्त के साथ शाखा दी और कृष्ण उसे Satyabhama के पास ले आए। सत्यभामा ने इसे अपने बगीचे में लगाया, लेकिन पेड़ ने फूल नहीं दिए।

जब, पारिजात के फूल खिले तो पेड़ फूलों सहित रुक्मिणी के बगीचे की ओर झुक गए।

ऐसा देखकर सत्यभामा नाराज हो गईं और नारद जी से बोली , ” ऐसा क्यों हुआ , इसका क्या मतलब है?”

नारद जी ने उत्तर दिया, “रुक्मिणी की भक्ति सच्ची और उसे कोई लालच नहीं है, इसलिए पेड़ उसकी ओर झुका हुआ है।”

सत्यभामा की गलती का एहसास

Satyabhama  को अपनी गलती का एहसास हुआ।

कुछ समय बाद नारद फिर आए और कहा, “क्या तुम मुझे अपना पति दान में दोगी?” सत्यभामा ने तुरंत कहा, “हाँ।”

नारद जी कृष्ण को अपने साथ ले जाने लगे , ऐसा देखकर अन्य सभी रानियों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया । ऐसा होता देख नारद जी ने कहा,

“अगर आप लोग कृष्णा को जाने नहीं देना चाहती तो आपको कृष्णा के बराबर भार का सोना और रत्न देना होगा , ऐसा करने पर मैं इन्हे छोड़ दूंगा ।”

ऐसा उपाय सुन कर सभी रानियों ने कृष्णा जी को तराजू के एक पलड़े में बिठा कर दूसरे तरफ अपने आभूषण रखना शुरू किया , परन्तु ये क्या कृष्णा का पलड़ा तो टस से मस नहीं हुआ। सभी रानियों के आभूषण भी समाप्त हो गए , ऐसा देखकर सत्यभामा ने कहा,

“अगर मैंने इन्हें दान किया है, तो इन्हें वापस  भी ले लूंगी ।”

आइए बोल कर उन्होंने अपने सारे आभूषण तराजू में रख दिए, फिर भी पलड़ा नहीं हिला। सत्यभामा लज्जित हो गईं।

जब रुक्मिणी जी ने यह समाचार सुना, तो वे तुलसी पूजन करके तुलसी जी की एक पत्ती ले आईं और उसे पलड़े में रख दिया , और ये क्या तुसली पत्र रखते  ही तराजू का वजन बराबर हो गया।

देवर्षि नारद ने सत्यभामा (Satyabhama) से कहा, “भक्ति अधिक महत्वपूर्ण होती है, भक्ति में अपार शक्ति है ।” सत्यभामा ने अपनी गलती से सीखा और प्रतिज्ञा की कि वह कभी इसे नहीं भूलेंगी। तत्पश्चात देवर्षि नारद जी तुलसी दल लेकर स्वर्ग चले गए और रुक्मिणी जी तुलसी के वरदान की महिमा के कारण सभी के सौभाग्य की रक्षा कर सकीं।

कथा का संदेश

कहानी से यह सिखने को मिलता है कि सच्चा प्रेम और भक्ति किसी भी भौतिक संपत्ति से अधिक मूल्यवान होते हैं। सत्यभामा ने अपनी गलती से सीखा कि ईर्ष्या और स्वार्थ से कुछ भी हासिल नहीं होता, जबकि सच्ची भक्ति और निस्वार्थ प्रेम सभी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।

इस प्रकार, पारिजात वृक्ष की यह कथा हमें यह संदेश देती है कि भक्ति और प्रेम में ही सच्ची शक्ति होती है, और जीवन में इन मूल्यों का अनुसरण करना सबसे महत्वपूर्ण है। सत्यभामा ने अपनी गलती से सीखकर यह प्रतिज्ञा की कि वह हमेशा भक्ति और प्रेम को प्राथमिकता देंगी।

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